🪷ओ३म् 🪷
*मूर्ति पूजा अवैदिक एवं वाममार्गियों की देन है|*
मैंने मूर्ति पूजा वेद विरुद्ध है|इस विषय पर🪔 गायत्री परिवार,जय गुरुदेव,संत निरंकारियों,कबीरपंथी रामपाल,हंसामत,ब्रह्माकुमारी व पौराणिकों🪔 को कई बार शास्त्रार्थकर पराजित किया है मगर ये पूर्वाग्रह से ग्रसित होने के कारण अविद्या को छोड़ नही पाते और 🍁चोरी छिपे मूर्ति पूजा का प्रचार भोली-भाली जनता के बीच में कर विद्वान होने का दंभ भरते हैं🍁 मगर पकड़ में कहीं न कहीं से आ ही जाते हैं|आदरणीय महर्षि दयानंद के परं शिष्य श्रीमान अरुण कुमार शुक्ल जी के वाट्सप पर किसी ने इधर-उधर की नकल कर मूर्ति पूजा को वेदों में सिद्ध करने का महापाप किया है|मैने उनके ही लेख पर प्रश्न चिह्न लगाकर उनको चुनौती दी है|या तो वो वेद का प्रमाण देकर मूर्ति पूजा को सिद्ध करें अथवा प्रायश्चित कर ऐंसी गल्ती फिर से न करने का संकल्प लें|
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🦚साकार-निराकार🦚
८०% प्रतिशत लोग आज भी ऐंसे हैं जो *निराकार-साकारऔर निर्गुण-सगुण को एक ही* समझते हैं|इसका कारण व्याकरण की जानकारी न होना औरअविद्या है|
ईश्वर सगुण यानि गुण सहित |जेंसे-दयालू,न्यायकारी,परोपकारी,स्वयंभू,सच्चिदानंद आदि ईश्वर के गुण होने से वह *सगुण* है|इसी प्रकार अजर,अमर,अविनाशी,अकायम्,अव्रणम्आदि होने से वह निर्गुण है|आकार रहित होने से *निराकार* है|जब निराकार सिद्ध हो गया फिर आकार वाला कहना मूर्खता नही तो क्या है?ईश्वर ही नहीं अपितु संसार की कोई भी निराकार वस्तु चाहे वह जड़ ही क्यों न हों वह साकार नहीं होती|जैंसे हवा,सुगंध ,शीतलता,भूख,प्यास आदि|
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आदि सृष्टि के प्रथम ऋषि *ब्रह्मा से लेकर जैमिनीऋषि* तक सभी ऋषि-मुनियों ने *सगुण -निर्गुण व निराकार ईश्वर* की उपासना की है |ईश्वर साकार नहीं है इसिलिये साकार की उपासना भी नही होती|
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श्रीराम शर्मा जी वेद मंदिर मशानी चौराहा मथुरा मे ४०वर्षों तक आर्य समाज मंदिर के कभी प्रधानतो कभी मंत्री रहे|इनके गुरु भाई आचार्य प्रेम भिक्षु थे मैं सन् १९९०से१९९३ तक उसी वेद मंदिर में रहा हूं| आचार्य प्रेम भिक्षु जी महाराज ने मुझे बताया कि श्री राम शर्मा मेरे गुरू भाई थे और इनकी शिक्षा मात्र हाईस्कूल थी|संस्कृत व्याकरण पड़ा ही नही तो वेद कहां पड़ते|अत:महीधऱ ण सायणाचार्य के वेदभाष्यों को छपाकर आचार्य श्री राम बन गये|इस विषय में अधिक विस्तार से जानना है तो गायत्री परिवार वालों को उनके गुूरु भाई आचार्य श्रीराम शर्मा एक सरल चिंतन पुस्तक मगां कर पढ़नी चाहिए| यह मैंने इसलिए लिखा कि महीधर और सायणाचार्य के भाष्य रूढ़िवादी भाष्य हैं|महर्षि दयानन्द जी ने यौगिक भाष्य को प्रमाण माना है|इस आधार पर *प्रतिमा का अर्थ होता है तुलना, प्रतिनिधि,परिमाण,प्रतिकृति* आदि|मगर प्रतिमा का अर्थ किसी भी व्याकरण शास्त्र में *पत्थर की मूर्ति* तो होता ही नहीं|
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🦁बौद्धिक स्तर🦁
अध्यात्म विद्या में *विद्या व अविद्या* की बात होती है|यहां बौद्धिक स्तर नहीं अंत:करण की शुद्धि हीज्ञान की ईकाई है उसके लिए बौद्धिक स्तर का कोई मतलब नहीं,अनपढ़ कबीर भी निराकार ईश्वर की उपासना करते हैं और आज का आ ई पी एस अफसर भी जड़ पत्थरों ,पेड़ों नदी-नालों पर सर रगड़ता है|
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*आस्तिक-नास्तिक*
आज की दुनिया मूर्ति-पूजकों के कारण अधिक नास्तिक हो रही है|देश में बेरोजगारी,भुखमरी,चरम सीमा पर है मगर *मूर्तिपूजक राजा पत्थरों पर अरबों रुपया बहारहा है जिससे पढ़े लिखे,बुद्धि जीवी नवयुवक हिंदू धर्म से पलायन* कर रहा है|अंतर्विरोध कर रहा है| दूसरे मजहबों में जा रहा है और नास्तिक बन रहा है|इतिहास साक्षी है आज तक किसी मुसलमान ,सिक्ख,ईसाई, पारसी,बौद्ध ने कभी आर्य समाज को छेड़ने की कोशिश भी नहीं की मगर मूर्ति पूजक हिदुओं की धज्जी तो सभी खुले आम उड़ा रहे हैं यदि आर्य समाज नही होता तो गायत्री परिवार जैंसे मूर्ति पूजक हिंदुओं का नामो निशान मिट गया होता|क्योंकि आर्य समाज वेद के सिद्धांतों पर चलता है| *चारों वेदों में २४५०० मंत्र* हैं एक भी मंत्र ऐंसा नही है जिसमें मूर्ति पूजा हो| सबसे बड़ी बात तो ये है कि वेद में मूर्ति शब्द ही नहीं है फिर मूर्ति पूजा का मतलब ही नही
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*केनोपनिषद*
इन्होंने जो केनोपनिषद का प्रमाण दिया है उसमें स्पष्ट लिखा है जो आँख से दिखता है|जो कानों से सुनाई दे| जिसे नाक सूंघे वह ईश्वर नहीं है|अर्थात वह निराकार है|
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*ईश्वर:सर्वभूतानां हृद्देशे अर्जुन तिष्ठति|*
*भ्रामयन सर्वभूतानि यन्त्ररूढ़ानि मायया!!*
हे अर्जुन!ईश्वर तो प्राणियों के भीतर सदा से विराजमान है मगर (माया)अज्ञान के कारण भ्रमित हौकर यंत्रवत भ्रमित लोग पत्थरों को पूज रहे हैं|गीता में भी मूर्ति पूजा का विधान नही है|
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*बिन पग चलहिं सुनहिं बिनु काना* -रामचरितमानस
*तुलसी मूरत पूजा है गुडि़यन का खेल|*
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इन सज्जन ने जिन वेद मंत्रों का प्रमाण दिया है जरा उसकी समीक्षा देखें ।
*न तस्य प्रतिमा अस्ति यस्य नाम महद्यश:|*
*हिरण्यगर्भ:इत्येष मा मा हिंँसीद् इत्येषा यस्मान्नजात इत्येष:|*|यजु०३२/३
*मंत्र का शुद्ध पदार्थ*
हे मनुष्यो!🌸यस्य🌸 =जिसका 🌸महत्🌸=महान,पूज्य,बड़ा 🌸यश:🌸=कीर्ति करने वाला धर्म युक्त आचरण ही 🌸नाम🌸=नाम स्मरण है जो 🌸हिरण्यगर्भ:🌸=सूर्य,बिजली आदि पदार्थों का आधार इति =इस प्रकार 🌸एष:🌸=अंतर्यामी होने से प्रत्यक्ष जिसकी 🌸मा🌸= मुझको 🌸मा,हिंसीत🌸=मत ताड़ना दे या वह मुझे अपने से विमुख न करे|
🌸 इति🌸=इस प्रकार 🌸एषा🌸=यह प्रार्थना वा बुद्धि और 🌸यस्मात🌸= जिस कारण🌸 न🌸:=नहीं 🌸जात:🌸=उत्पन्न हुआ 🌸इति🌸=इस प्रकार 🌸एष:🌸=यह परमात्मा उपासना के योग्य है 🌸तस्य🌸=उस परमेश्वर की 🌸प्रतिमा🌸=परिमाण अर्थात् उसके तुल्य,अवधि का साधन प्रतिकृति,मूर्ति वा आकृति |🌸न अस्ति🌸=नहीं है,नहीं है|
🌻दूसरा मंत्र देखें🌻
*संवत्सरस्य प्रतिमा यां त्वां रात्र्युपास्महे|*
*सा न आयुषमतींप्रजां रायस्यपोषेण सं सृज||*
अथर्ववेद ३/१०/३
अत्यंत परमेश्वरी प्रकृति के सूक्ष्म और स्थूल रूप के ज्ञान से उपकार लेकर हम अपनी संतान के सहित धनी,स्वस्थ्य और चिरंजीवी बनें|यहां भी *प्रतिमा का अर्थ प्रतिनिधि* किया है जिसमें उपमालंकार का वर्णन है|
🌳तीसरा वेद मंत्र🌳
*एह्यश्मानमा तिष्ठाश्मा भवतु ते तनु:|*
*कृण्वन्तु विश्वे देवा आयुष्टे शरद:शतम्|*|अथर्व०३/१३/४
इस मंत्र में ब्रह्मचारी को पत्थर की तरह कठोर शरीर बनाने की ६शिक्षा है न कि मूर्ति पूजा का|*पदार्थ पर ध्यान दें|*
हे ब्रह्मचारी 🌸एहि=🌸आ+इहि=तू आ,🌸अश्मानम्🌸=इस शिला पर,🌸आ+तिष्ठ🌸=चढ़,ते=तेरा,🌸तनू🌸=शरीर,🌸अस्मा🌸=शिला जैंसा दृढ़,🌸अस्तु🌸=होवे|🌸विश्वे🌸=सब,🌸देवा🌸=उत्तम गुण वाले पुरूष और पदार्थ,🌸ते=🌸तेरी,🌸आयु🌸=आयु को,🌸शतम्🌸=सौ,🌸शरद:🌸=मौसमों तक 🌸कृण्वन्तु🌸=दीर्घ करें|
इस प्रकार वेद में एक भी मंत्र ऐंसा नहीं है जिसमें *मूर्ति पूजा* का विधान हो मगर हजारों मंत्र ऐंसे हैं जिनमें ईश्वर को निराकार बताया है|हम पहले ही बता चुके हैं कि *ईश्वर सगुण-निर्गुण व निराकार है साकार नहीं|*
रही बात विदेशी विद्वानों की तो हम विदेशी विद्वानों को प्रमाण ही नहीं मानते क्योंकि विद्या का जन्म भारत में|विद्वानों का जन्म भारत में| विदेशों में विद्या ले जाने वाले भारत के ही महर्षि हैं फिर विदेशीं विद्वानों को हम किसलिए प्रमाण मानें ?जिनको भारत के वेदों व महर्षियों का पता न हो वे ही गायत्री परिवार वाले अखंड ज्योति(खंड-खंड-भ्रमित करते वाली अविद्या ज्योति)को प्रमाण मानें
🔥 *अंतिम निवेदन*🔥
संसार के मूर्ति पूजकों से निवेदन हैकि इन * *(६)* बातों पर गंभीरता से विचार करें|
*[१]* मानव सहित संसार को ईश्वर बनाता है उस सर्वव्यापक ईश्वर की उपासना करनी चाहिए या धंधा करने वाले मूर्तिकार मनुष्यकी बनाई पत्थर की मूर्रियों की|जब अविद्वान पुजारी आपको बहकाता है कि मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा हो गई तब आपको कहना चाहिए कि माता-पिता में तो खुद ईश्वर ने प्राण प्रतिष्ठा की है उनकी पूजा ही करना श्रेष्ठ है|
*[२]* सभी प्राणियों में प्राण प्रतिष्ठा ईश्वर करता फिर मूर्ति में ईश्वर प्राण प्रतिष्ठा क्यों नही करता?क्या पंडित ईश्वर से ज्यादा विद्वान है?
*[३]* ईश्वर जिसमें प्राण डालता है वह चलता है|दौड़ता,खाता-पीता-बोलता हैऔर जन्मता -मरता है क्या आज तक किसी मूर्ति पूजक ने मूर्ति को जन्मते व मरते देखा है?
*[४]* समस्त मानव पांच तत्वों से बने हैं परंतु *मूर्ति एक तत्व,दो तत्व,कोई अष्ट धातुओं* से क्यों बनी ? बनने के बाद,प्राण डालने के बाद भी गतिहीन,नेत्र होकर भी नेत्रहीन क्यों?मित्रो मूर्ति पूजा सीढ़ी नहीं खाई है|
*[६]* वेद ईश्वरीय वाणी है| उसके अनुसार संसार अजन्मा,सर्वव्यापक ईश्वर ने बनाया मगर शिवपुराण कहता है शिव ने,विष्णु पुराण कहता है विष्णु ने, देवी भागवत वाले कहते हैं दुर्गा मां ने संसार बनाया!यह *ईश्वर घोटाला* कब तक चलेगा|इसी घोटाले के कारण लोग *नास्तिक हो रहे हैं और हिंदू मत* से भाग रहे हैं|यदि भला चाहो तो वैदिक धर्म व आर्य समाज की शरण में आ जाओ| नही तो इतिहास साक्षी है इसी *मूर्ति पूजा के कारण इस्लाम भारत में आया और बसा* है|जिन देशों में मूर्ति पूजा नहीं वहां इस्लाम को घुसने की हिम्मत भी नहीं|एक निराकार की उपासना करो इसी में भारत व भारतीयता संरक्षित है|इतिहास साक्षी हैजब भारत विश्व गुरू था यहां न कोई मूर्ति थी न ही मूर्ति पूजा|ब्रह्मा,विष्णु ,महेश कोई ईश्वर नहीं थे| ईश्वर तो सगुण-निर्गुण,निराकार है|उसी निराकार ईश्वर के गुणवाची नाम हैं ब्रह्मा,विष्णु,महेश|ईश्वर का मुख्य नाम,निज नाम केवल-केवल 🌻ओ३म् 🌻है|
*अति विशेष*
इस प्रकार हमने वेद मंत्रों का प्रमाण देकर सिद्ध किया है कि *वेद ही एक मात्र सत्य सनातन धर्म है वेद स्वत: प्रमाण* है।वांकी गीता ,महाभारत, रामायण आदि परत: प्रमाण होने से मान्य नहीं है।समय के अभाव से हमने अन्य ग्रंथों की चर्चा नहीं की है। जो *वेद कहता है वही सत्य है।प्रामाणिक है।वेद में ईश्वर को निराकार बताया है साकार या मूर्तिवाला नहीं*।
🔥ओ३म् स्वस्ति🔥
आचार्य सुरेश जोशी
वैदिक प्रवक्ता
आर्यावर्त्त साघना सदन बाराबंकी |