अनुराग लक्ष्य, 19 नवंबर
सलीम बस्तवी अज़ीज़ी,
मुम्बई संवाददाता।
इसमें कोई शक नहीं कि साहित्य और अदब ने हमेशा समाज में इंसानियत भाईचारगी के समरसता को कायम किया है। बरसों से हमारी परंपरा रही है कि जब जब इस देश में कोई ऐसी मुश्किल आन पड़ी है, तब तब कलमकारों ने अपनी लेखनी के माध्यम से उस समस्या का हल निकाला है। और यह सच भी है कि पूरी दुनिया में इंसानियत और मानवता ही एक ऐसा धर्म है, जो सारे धर्म और मज़हब से ऊपर है। इसी सच्चाई और हकीकत को आपसे रू बरु कराने के लिए मैं Saleem Bastavi Azizi, आज कुछ अपने चुनिंदा अशआर लेकर आपकी खिदमत में हाज़िर हो रहा हूं।
1/ आओ नफरत की यह दीवार गिरा दी जाए
इक नई दुनिया मुहब्बत की बसा दी जाए
अमन का दीप जलेगा ज़रूर भारत में
गंगा जमुना की लहर फिर जो बहा दी जाए,,,,
2/ मुहब्बत को फिज़ाओं में चलो हम आम कर डालें
जो तूफाँ हैं ज़माने में उन्हें गुलफाम कर डालें
जिन्होंने ज़िंदगी का अक्स भी देखा नहीं अब तक
चलो यह ज़िंदगी अपनी उन्हीं के नाम कर डालें,,
3/ कभी ज़माने में ऐसा भी कोई यार मिले
वफा के नाम पे हर रोज़ उससे प्यार मिले
गरीब मैं सही मेरा शहर न गरीब रहे
हमारे हाथों को कोई ऐसा कारोबार मिले,,,
4/ इजाज़त देती है जब मां तो दुनिया घूम लेता हूं
भुलाकर दर्द ओ गम सारे खुशी से झूम लेता हूं
हुआ मालूम जबसे मां के कदमों में ही जन्नत है
सुबह उठते ही अक्सर पांव मां के चूम लेता हूं,,,
5/ या रब दर ए हबीब का सदका मुझे भी दे
खुल्द ए बरीं को जाय जो रस्ता मुझे भी दे
माना कि गुनहगार हूं, बदकार हैं बहुत
गर हो सके ज्यारत ए काबा मुझे भी दे,,,,
6/ हम न हारे थे, हम न हारे हैं
अब भी दामन में कुछ शरारे हैं
नफरतें रोज़ हार जाती हैं
हम मुहब्बत के ऐसे धारे हैं,,,
7/ ऐ खुदा आज की शब लाल ओ गुहर हो जाए
ख्वाहिश ए दिल है कि तैबा का सफर हो जाए
है तमन्ना यही ज़िंदा हैं जो तारीकी में
ऐसे इंसानों की दुनिया में सहर हो जाए,,,
,,,,,,,, सलीम बस्तवी अज़ीज़ी,,,,,,,,