दुनिया क्वॉड को इसी रूप में जानती है कि यह इस समय अमेरिका की तरफ से चीन को घेरने के लिए बनाए जा रहे अनेक समूहों में से एक है। इसलिए इशिबा ने जो कहा, उससे भारत के अलावा किसी को परेशानी नहीं हुई है।
जापान के नए प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा चीन के प्रति सख्त रुख के लिए जाने जाते हैं। प्रधानमंत्री बनते ही उन्होंने अपनी विदेश संबंधी प्राथमिकताएं वॉशिंगटन स्थित थिंक टैंक- हडसन इंस्टिट्यूट द्वारा प्रकाशित एक लेख में बताई। इसमें उन्होंने चीन का मुकाबला करने के लिए एशियाई नाटो बनाने का आह्वान किया। इशिबा ने कहा कि एशियाई नाटो बनाने की जरूरत इस तथ्य से उपजी है कि अमेरिका की ताकत में तुलनात्मक कमी आई है। तो उन्होंने सुझाव दिया कि चार देशों- अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत- के समूह क्वॉड को एशियाई नाटो की भूमिका ग्रहण करनी चाहिए।
इस बयान से भारत असहज हुआ है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इस पर कहा कि भारत “एशियाई नाटो” का समर्थन नहीं करता। वॉशिंगटन में एक कार्यक्रम के दौरान जयशंकर ने स्पष्ट किया कि भारत जापान की तरह सैन्य गठबंधनों पर निर्भर नहीं है और क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए उसकी अपनी अलग रणनीति है। कहा- “हम वैसे किसी रणनीतिक ढांचे के बारे में नहीं सोच रहे हैं।”
क्वॉड के गठन का प्रस्ताव मनमोहन सिंह सरकार के जमाने में ही आया था। लेकिन भारत ने ऐसे किसी समूह में शामिल होने से इनकार किया, जिसकी स्पष्ट पहचान किसी अन्य देश (यानी चीन) के विरुद्ध हो। नरेंद्र मोदी सरकार ने इस नीति को बदल कर क्वॉड का सदस्य बनने का निर्णय लिया। लेकिन तब से वह यह कहने में काफी ऊर्जा लगाती रही है कि यह समूह किसी देश के खिलाफ नहीं है, बल्कि इसका सकारात्मक एजेंडा है। कोरोना महामारी के दौर में ऐसा एजेंडा दिखाने के लिए वैक्सीन सहयोग की बात प्रचारित की गई।
लेकिन बाकी तीन देशों की ऐसी कोशिश नहीं रही है। दुनिया क्वॉड को इसी रूप में जानती है कि यह इस समय अमेरिका की तरफ से चीन को घेरने के लिए बनाए जा रहे अनेक समूहों में से एक है। इसलिए इशिबा ने जो कहा, उससे भारत के अलावा किसी को परेशानी नहीं हुई है। बल्कि सवाल यह उठा है कि भारत ने खुद को अमेरिका की एशिया-प्रशांत रणनीति से संबंधित किया है, तो फिर यह कहने से उसे गुरेज क्यों है?