राम रावण युद्ध समाज को एक सीख देती है -पंडित तीर्थराज मिश्र 

कप्तानगंज / बस्ती – राम -रावण युद्ध अनाचार और सदाचार का साक्षात द्वन्द्व है।साधन अन्याय का साथ तो क्षणिक रूप में देता है, पर साधन हीन के न्याय का संबल उसके अनैतिक पराक्रम को खंड खंड कर देता है। राम भले ही सामरिक संसाधनों से बिरत थे पर उनके लोक सदाचार की पुण्य विभूति के समक्ष रावण के संपूर्ण अनाचारिक वैभव संपन्न युद्धक संसाधन क्रम- क्रम से नष्ट होकर चूर-चूर हो गए। यही अनैतिक एवं नैतिक समर के दुःख और सुख तथा जय और पराजय का युद्धक परिणाम रहा।जहां साधन की एक न चली और लोक शक्ति धारक के निहत्थे प्रभु श्री राम अनाचारी रावण के संपूर्ण व्यूह रचना को ध्वस्त करके रामराज के साकार स्वरूप दिखाएं । उक्त अमृत वचन राम -रावण युद्ध नैतिकता एवं अनैतिकता पर व्याख्या कर श्रोता भक्तों को अमृत पान कराते सुप्रसिद्ध मानस वेत्ता और परसा गांव निवासी पंडित तीर्थराज मिश्र ने गत दिनों कप्तानगंज क्षेत्र के सेठा गांव में व्यक्त किया। “रावण रथी बिरथ रघुबीरा” के मानस प्रसंग की तत्व विवेचना करते मानस मर्मज्ञ पंडित तीर्थराज मिश्र ने कहा कि रावण के संपूर्ण सामरिक वैभव और युद्धक कलाओं को विष्णु स्वरूप प्रभु श्री राम निहत्थे और साधन विहीन स्वरूप में अनाचारी रावण का संपूर्ण प्रभुत्व खंड खंड करके मानवता की नैतिक रक्षा की। मानस महात्मा ब्रह्मचारी पंडित तीर्थराज मिश्र ने कहा कि प्रकृति सदैव नैतिक शक्तियों को संबल देकर साथ खड़ी रहा करती है। अनैतिक स्वभाव उसके कोप का विह्वल विध्वंस स्वरूप हुआ करता है ।राम रावण युद्ध के परिणाम भी इसी सिद्धांत के निष्कर्ष रहे है ।जहां एक तरफ तो साधन की महिमा गरजती है वहीं दूसरे तरफ निहत्थे का शालीन परोपकार और नैतिक बल सन्नद अडिग है। ऐसे में साधन निष्प्रयोज्य होकर असहाय बनते हुए निहत्थे का विजय आश्चर्य अपनी आंखों से देखने पर विवश हो रहा है।

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