स्वतंत्र लेखक मंच पर हिंदी दिवस सप्ताह भर अत्यंत हर्षोल्लास पूर्वक मनाया गया

स्वतंत्र लेखन मंच ने मंच अध्यक्षा दवीना अमर ठकराल ‘देविका’ के मार्गदर्शन और विनोद वर्मा दुर्गेश ‘मुकुंद’ के नेतृत्व में हिन्दी दिवस की सार्थकता को साकार करने के उद्देश्य से

हिन्दी सप्ताह का आयोजन किया। इस आयोजन का उद्देश्य हिन्दी को सम्मान देना और बढ़ावा देना और जन मानस में हिन्दी के व्यापक रूप का प्रचार प्रसार करना रहा| हिन्दी दिवस प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को मनाया जाता है। भारत में अधिकतर क्षेत्रों में हिन्दी भाषा बोली जाती थी, इसलिए हिन्दी को राजभाषा बनाने का निर्णय लिया और इसी निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को प्रत्येक क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये वर्ष 1953 से पूरे भारत में 14 सितम्बर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है। स्वतंत्र लेखन मंच अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम के तत्वाधान में हिन्दी सप्ताह का आयोजन किया गया, जिसमें देश के विभिन्न क्षेत्रों से प्रबुद्ध रचनाकारों ने नियमित प्रतिभागिता की|

प्रतियोगिता के पहले दिन 09 सितंबर को, शीर्षक “हिन्दी अपनाएं, नहीं शरमायें” पर डॉ अनीता राजपाल वसुंधरा द्वारा मनहरण घनाक्षरी पर आधारित पर एक विशेष गीतात्मक कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें 29 रचनाकारों ने अपने गीतों और अनूठे भावों से हिन्दी की व्यापकता, स्वीकार्यता को दर्शाते हुये जन साधारण से हिन्दी को अपनाने का अनुरोध किया| दूसरे दिन “बुजुर्ग युवा और हिन्दी भाषा” विषय पर सरोज डिमरी के मंच संचालन में

व्यंग्यात्मक कविता ने 27 रचनाकारों के हास्य और व्यंग्य के अनूठे अंदाज़ को कलम से उकेर दिया|

तृतीय दिवस दोहा गीत आधारित छंद पर आधारित “हिन्दी बोल, मीठे बोल” शीर्षक पर अनूठे और सुरीले गीत पढ़ने को मिले| दिव्या भट्ट स्वयं के संचालन में रचनाकारों ने अपने भावों को गीतों में ढाला| चतुर्थ दिवस छंदमुक्त कविता के नाम रहा जिसमें 27 रचनाकारों ने हिन्दी क्लिष्ट नहीं परिष्कृत चाहिए विषय पर संतोषी किमोठी वशिष्ठ सहजा के मंच संचालन अपने विचारों को सहज सरल और आसान भाषा में लिख जन मानस के लिए उत्तम संदेश दिया| पंचम दिवस अर्थात 13 सितंबर को विषय हिन्दी भाषा नहीं भावना पर 24 रचनाकारों ने अपने गद्य लेखन के नए अंदाज़ को देखा| हिन्दी के संपर्क भाषा के रूप और सहज अनुकूलन क्षमता को पहचाना| सप्ताह के अंतिम दिवस आज के ज्वलंत प्रश्न “हिन्दी दिवस एक दिन नहीं प्रतिदिन “मनाये पर 4Oरचनाकारों ने अपने हृदय के उद्गारों और चिंता को व्यक्त किया|

प्रतिभागियों में संजीव कुमार भटनागर ‘सजग’, सुरेश चंद्र जोशी सहयोगी, नीरजा शर्मा अवनि, अशोक दोशी दिवाकर, डॉ अनीता राजपाल वसुंधरा, दिव्या भट्ट स्वयं,एकता गुप्ता काव्या महक, अमिता गुप्ता नव्या सुरभि, वीना टण्डन पुष्करा,फूल चंद्र विश्वकर्मा भास्कर, स्वर्ण लता सोन कोकिला, रेखा पुरोहित तरंगिणी, ललित कुमार भानु, नन्दा बरमाडा सलिला, संतोषी किमोठी वशिष्ठ सहजा, सुमन किमोठी वसुधा , नृपेन्द्र चतुर्वेदी सागर, मोहन प्रसाद यादव साधक, अरुण ठाकर कवित्त, रंजना बिनानी स्वरागिनी, डॉ पूनम सिंह सारंगी, अनु तोमर अग्रजा, डॉ पूर्णिमा पाण्डेय सुधांशु , संगीता चमोली इंदुजा , सरोज डिमरी, बबीता भाटिया, किरण भाटिया नलिनी,चंद्र भूषण निर्भय, अनु भाटिया, सिद्धि डोभाल सागरिका , मंजुला सिन्हा मेघा, माधुरी श्रीवास्तव यामिनी, आशा बुटोला सुप्रसन्ना,सविता मेहरोत्रा सुगंधा,सुनीला गुप्ता,देबीदीन, कृष्ण कांत मिश्र कमल, डॉ वंदना खंडूरी,मनोज चंद्रवंशी मौन, प्रमिलाझरबडे, जवाहर देव, डॉक्टर ललिता सिंगर, दीपिका मोयेल, सुरेंद्र बिंदल, मंजी भाई, संगीता सिंघल, प्रेम सिंह काव्या, कुसुम लता तरुषि, भारतीय अग्रवाल, होशियार सिंह यादव, के एल महोबिया, नीरू बंसल, अनामिका वैश्य आईना, ज्ञानेश्वर आनंद, विपिन सिंह, विद्या शंकर अवस्थी, राजकुमारी,कृत्यानंद, सुनील भारती आज़ाद सौरभ, अंजू कश्यप, दिनेश प्रताप सिंह आदि की रचनाओं ने स्वतंत्र लेखन मंच को सुवासित कर दिया|

प्रतियोगिता और प्रतिभागिता के लिए नीरजा शर्मा ‘अवनि’, सुमित जोशी ‘राइटर जोश’, सुनील भारती आज़ाद सौरभ और नीतू गर्ग ‘कमलिनी’ ने रचनात्मक पोस्टर, कोलाज और वीडियो बनाए, साथ ही अनुपम प्रशस्ति पत्रों के नवल रूप हिन्दी स्वरांजलि, हिन्दी दोहांजलि, हिन्दी कवितांजली, हिन्दी गद्यांजली, हिन्दी दिव्यांजली और हिन्दी भावांजलि रचनाकारों को सम्मान प्रदान किया, जो कार्यक्रम की गरिमा के अनुरूप थे। कृष्णकांत मिश्रा ‘कमल’ के सहयोग और दवीना ठकराल के उद्बोधन ने रचनाकारों के लिए प्रेरणा और प्रोत्साहन का कार्य किया। कार्यक्रम की समीक्षा अशोक दोशी ‘दिवाकर’ और सुरेश जोशी सहयोगी ने अपने अनूठे अंदाज में की। सुश्री दवीना अमर ठकराल देविका के आह्वान आओ संकल्पित हों परिष्कृत व त्रुटि रहित हिन्दी भाषा बोलने लिखने के लिए। हिंदी को दिल से अपनाने के लिए केवल एक दिन नहीं प्रतिदिन के लिए। हिन्दी भाषा है विचारों की सच्ची संवाहक, भारतीय संस्कृति और जीवन मूल्यों की है सच्ची परिचायक ने जैसे गागर में सागर भरकर हिन्दी सप्ताह के कार्यक्रम का समापन कर दिया|