नई दिल्ली – सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय पुरुष आयोग के गठन और घरेलू हिंसा के तहत विवाहित पुरुषों द्वारा आत्महत्या के मुद्दे पर दिशानिर्देश तैयार करने की मांग वाली जनहित याचिका पर विचार करने से सोमवार को इनकार कर दिया।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और दीपांकर दत्ता की पीठ ने याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा कि याचिका एकतरफा तस्वीर पेश करती है। अदालत ने कहा, “आप बस एकतरफ़ा तस्वीर पेश करना चाहते हैं। क्या आप हमें शादी के तुरंत बाद मरने वाली युवा लड़कियों के आंकड़े दे सकते हैं?” जनहित याचिका को खारिज करते हुए (वापस ली गई की तरह) पीठ ने मौखिक रूप से कहा कि मौजूदा आपराधिक कानून आत्महत्या के मामलों में ऐसी शिकायतों का ख्याल रखता है और लोगों के पास कोई उपाय नहीं है। अपनी याचिका में वकील महेश कुमार तिवारी ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों का हवाला देते हुए दावा किया कि बड़ी संख्या में पुरुषों ने पारिवारिक समस्याओं और विवाह संबंधी मुद्दों के तहत अपना जीवन समाप्त कर लिया। याचिका में कहा गया था, “वर्ष 2021 में लगभग 33.2 प्रतिशत पुरुषों ने पारिवारिक समस्याओं के कारण और 4.8 प्रतिशत ने विवाह संबंधी मुद्दों के कारण अपना जीवन समाप्त कर लिया। उस वर्ष आत्महत्या करने वालों में कुल 1,18,979 पुरुष (72 प्रतिशत) और 45,026 महिलाएं (लगभग 27 प्रतिशत) हैं। इसमें राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को घरेलू हिंसा से पीड़ित पुरुषों की शिकायतों को स्वीकार करने और विवाहित पुरुषों के बीच आत्महत्या के मुद्दे पर विचार करने का निर्देश देने की मांग की गई थी। याचिकाकर्ता ने मांग की कि भारत के विधि आयोग को इस मुद्दे पर शोध करने और एक रिपोर्ट तैयार करने का निर्देश जारी किया जाए। याचिका में कहा गया है कि प्रत्येक पुलिस स्टेशन को घरेलू हिंसा के पीड़ितों की शिकायत स्वीकार करनी चाहिए और केंद्र सरकार द्वारा कानून बनाए जाने तक उसे राज्य मानवाधिकार आयोग को भेजना चाहिए।