गीत
****
ढाई अक्षर भले प्रेम के,यह पढ़ पाना सरल नहीं।
होना तो आसान प्रेम का,किंतु निभाना सरल नहीं।
सच्चा प्यार मिले ऐसी भी,सबकी तो तकदीर नहीं।
छोड़ गया मझधार प्रेम तो,भोगी किसने पीर नहीं।।
साथ अंत तक चले प्रेम वो,मिल भी जाना सरल नहीं..
होना तो आसान प्रेम का,किंतु निभाना सरल नहीं।।
प्रेम समर्पण और त्याग की,
समझो जटिल कहानी है।
पग पग शूल बिछाना जग की,
जिसमें रीति पुरानी है।।
बैरी दुनिया के जुल्मों से,भी बच पाना सरल नहीं..
होना तो आसान प्रेम का,किंतु निभाना सरल नहीं।।
ऐसे में साथी ही छोड़े,तब गुपचुप आँसू बहते।
तड़प तड़प कर गुज़रें रातें,गुम सुम गुमसुम दिन रहते।।
तब पीड़ा से भरा हुआ वह,समय बिताना सरल नहीं..
होना तो आसान प्रेम का,किंतु निभाना सरल नहीं।
मतलब की दुनिया में सच्ची,
जिन्हें प्रेम की चाह रहे इक दूजे की खुद से ज्यादा उनको ही परवाह रहे।।
सितम जमाना कर ले ऐसा,प्यार मिटाना सरल नहीं..
होना तो आसान प्रेम का,किंतु निभाना सरल नहीं।।
अंजना सिन्हा “सखी ”
रायगढ़