मोदी की पहली विदेश यात्रा रही सकारात्मक

इटली के अपूलिया में संपन्न हुए जी-7 सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आउटरीच सत्र में वैश्विक नेताओं से मुलाकात की। इस क्रम में तमाम वैश्विक राजनीतिक हस्तियों से उनका मिलना हुआ। इनमें पोप फ्रांसिस भी शामिल थे, जिन्होंने भरपूर गर्मजोशी से मोदी को गले लगाया और विचार-विमर्श किया। मोदी ने पोप को भारत आने का न्योता भी दिया। भारत में कैथोलिक इसाइयों की संख्या एशिया में दूसरे नंबर पर है।
भारत के केरल जैसे राज्यों में ईसाइयों की संख्या खासी है, इसलिए इसे संकेत माना जा रहा है कि मोदी ने भारत की धर्मनिरपेक्ष छवि को दर्शाया है। जी-7 यानी ग्रुप ऑफ सेवन दुनिया केसबसे अमीर और खुद को अत्याधुनिक मानने वाले मुल्कों की संस्था है।
कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, ब्रिटेन, अमेरिका और जापान ये सात देश हैं। इनकी ग्लोबल ट्रेड और वैश्विक वित्त पण्राली पर खासी पकड़ है। इस बार ये सब आर्थिक सुरक्षा और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे मुद्दों को लेकर विमर्श कर रहे थे।
चूंकि भारत विकसित होती अर्थव्यवस्था है, इसलिए वे उसके सहयोग और लाभ की साझेदारी पर काम करने को इच्छुक हैं। इस सम्मेलन में दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका के साथ भारत प्रशांत क्षेत्र के बारह विकासशील देशों के नेताओं को इसी खास मकसद से आमंत्रित किया गया था।
माना जा रहा है कि जी-7 देश चीन और रूस की बढ़ती आर्थिक ताकत को लेकर चिंतित हैं। इस मौके का फायदा उठाने में मोदी सफल होते नजर आ रहे हैं। साथ ही, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को सुरक्षित और भरोसेमंद बनाने के प्रति सरकार की जिम्मेदारी को भी मदद मिलने की उम्मीद है।
इस मसले पर बनने वाले अंतरराष्ट्रीय नियम-कानूनों द्वारा देश में बढ़ रहे साइबर क्राइम पर सख्ती की जा सकेगी। हालांकि यह कहना गलत नहीं है कि इस गुट के पास ऐसे कोई अधिकार नहीं हैं, जिनके बल पर कोई भी निर्णय जबरन लागू कराया जा सके, मगर भारत को इन देशों से जो सहयोग और लाभ मिल सकते हैं, उनके प्रति यदि मोदी सफल होते नजर आते हैं तो यह देश के भविष्य के लिए बेहतर करने का घटनाक्रम ही कहा जाएगा।
नि:संदेह इनसे जुड़े परिणामों के लिए अभी इंतजार करना होगा। मगर कुल मिलाकर दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले देश का लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी की यह पहली विदेश यात्रा सकारात्मक कही जा सकती है, जिसके परिणाम आने वाले वर्षो में यकीनन नमूदार होंगे।

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