🐂 *ओ३म्* 🐂
🦕 ईश्वरीय वाणी वेद 🦕
*ओ३म् इंद्रायाहि चित्रभानो सुता इमे त्वायव:।अण्वीभिस्तना पूतास:* ।।
।। ऋग्वेद १/३/४।।
🩸 *मंत्र का पदार्थ*🩸
( चित्रभानो ) हे आश्चर्य प्रकाश युक्त ( इन्द्र ) परमेश्वर! आप हमको कृपा करके प्राप्त हूजिए। कैसे आप हैं कि जिन्होंने ( अण्वीभि ) कारणों के भागों से ( तना ) सब संसार में विस्तृत ( पूतास: ) पवित्र और ( त्वायव: ) आपके उत्पन्न किए हुए व्यवहारों से युक्त ( सुता ) उत्पन्न हुए मूर्तिमान पदार्थ उत्पन्न किये हैं,हम लोग जिनसे उपकार लेने वाले होते हैं, इससे हम लोग आप ही के शरणागत हैं!
🐢 *मंत्र का भावार्थ*🐢
इस मंत्र में *श्लेषालंकार* है। जिसमें सूर्य और परमेश्वर के गुण कर्म प्रकाशित किए हैं , इनसे परमार्थ और व्यवहार की सिद्धि के लिए अच्छी प्रकार उपयोग लेना सब मनुष्यों को योग्य है।
🐇 *मंत्र का सार तत्व* 🐇
श्लेष अलंकार का अर्थ होता है एक में दो या दो से अधिक का चिपकना और अर्थ व भाव का अलग-अलग होना। यहां *परमेश्वर और सूर्य* दोनों एक में सन्निहित हैं मगर दोनों का कार्य अलग-अलग है उस अलग अलग गुणों को लेकर जीवात्माओं को अपने जीवन को उठाना है।
यद्यपि सूर्य जड़ पदार्थ है।उसे परमात्मा ही बनाता है। और वह साकार भी है जबकि उसको बनाने वाला परमात्मा निराकार है। सूर्य में जो भी गुण हैं वो परमात्मा ने ही दिए हैं इसका मतलब वो गुण परमात्मा में भी हैं। क्योंकि परमात्मा को सृष्टि बनाकर जीवात्माओं को *भोग अपवर्ग* देना ईश्वर की सृष्टि का प्रयोजन है। यहां पर हम संक्षेप में *परमात्मा व सूर्य* के एक गुण से दो लक्ष्य को प्राप्त करने का तरीका बताते हैं।
प्रकाश ईश्वर में भी है सूर्य में भी है। ईश्वर का प्रकाश *आध्यात्मिक* और *सूर्य* का प्रकाश भौतिक है।हे मनुष्यों! ईश्वर के प्रकाश को संध्या से प्राप्त करो और सूर्य के भौतिक प्रकाश में *त्याग पूर्वक संसार के भोगों को भोगकर* योग व भोग दोनों को प्रयोग कर अपना सृष्टि में आने के उद्देश्य की पूर्ति करो!तभी मानव जीवन को प्राप्त करना सफल होगा!
आचार्य सुरेश जोशी
💐 *वैदिक प्रवक्ता*💐