ईश्वरीय वाणी वेद -आचार्य सुरेश जोशी

🌴🌴 ओ३म् 🌴🌴
🍁 ईश्वरीय वाणी वेद 🍁
🧘 दिनांक १५ म ई २०२४ 🧘
📚 मंत्र परिचय 📚
ऋग्वेद मंडल एक।सूक्त दो। मंत्र संख्या एक।
🥝आज का वेद मंत्र 🥝
*ओ३म् वायवायाहि दर्शतेमे सोमा अरंकृता: ।तेषां पाहि श्रुधी हवम्* ।।
🚩 मंत्र का पदार्थ 🚩
*दर्शत*= स्पर्शादि गुणों से देखने योग्य *वायो*= सब मूर्तिमान पदार्थों का आधार और प्राणियों कू जीवन का हेतु भौतिक वायु *आयाहि*= सबको प्राप्त होता है फिर जिस भौतिक वायु से *इमे*= प्रत्यक्ष *सोमा:*= संसार के पदार्थों की *अरंकृता*= शोभायमान किया है वहीं *तेषाम्*= उन पदार्थों की *पाहि*= रक्षा का हेतु है और *हृदय*= जिससे सब प्राणी लोग कहने और सुनने रुप व्यवहार को *श्रुधि*= कहते सुनते हैं।
🕉️ *मंत्र का भावार्थ*🕉️
जैसे परमात्मा के सामर्थ्य से रचे हुए पदार्थ नित्य ही सुशोभित होते हैं, वैसे ही जो ईश्वर का रचा हुआ भौतिक वायु है,उसकी धारणा से भी सब पदार्थों की रक्षा और शोभा है। जैसे जीव की प्रेमभक्ति से की हुई स्तुति को सर्वगत ईश्वर प्रतिक्षण सुनता है, वैसे ही भौतिक वायु के निमित्त से भी शब्दों के उच्चारण और श्रवण करने को समर्थ होता है।।
🦚 *मंत्र का सार तत्व*🦚
इस मंत्र में वायु तत्व के बारे में वर्णन है।कभी मन में शंका हो कि ये वायु अपने आप बन गया या किसी ने बनाया है तो उत्तर दे रहे हैं कि जैसे सारा संसार परमात्मा ने बनाया वैसे वायु भी ईश्वर ने ही बनाया है। जैसे ईश्वर जीवात्मा के प्रत्येक कर्म को प्रतिक्षण देख रहा है।सुन रहा है।जान रहा है उसी प्रकार संसार के समस्त जीव इस वायु के सहारे ही शब्दों को सुनते हैं और सुनाते हैं।जिस दिन यह बात जीव के समझ में आ जायेगी फिर उसे परमात्मा समझने में एक क्षण भी नहीं लगेगा क्योंकि गुण से गुणी का ज्ञान हो ही जाता है।इस प्रकार इस मंत्र में श्लेषालंकार है।।
आचार्य सुरेश जोशी
*वैदिक प्रवक्ता*
##7985414636 🪵

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