किस्मत की लकीरें भी बदलती हैं
उन्हें बदलने का हौसला होना चाहिए
कुरूक्षेत्र में रण सदैव होता है
पार्थ सम धर्म का साथ होना चाहिए
समंदर की भी अपनी एक सीमा
उसको बाँधने वाला किनारा होना चाहिए
मन चंचल इंद्रियों के अधीन है
उसको नियंत्रित करने वाला होना चाहिए
ईश्वर को पाना कहाँ मुश्किल है
स्वयं से स्वयं का परिचय होना चाहिए
स्वरचित एवं मौलिक रचना
डॉ अनुराधा प्रियदर्शिनी
मथुरा उत्तर प्रदेश