🌹🌹 ओ३म् 🌹🌹
🌴बहु कुंडीय यज्ञ संवाद 🌴
🌻🌻 शास्त्र जिज्ञासा 🌻🌻
आजकल आर्य समाज में बहु कुंडीय यज्ञ पर शास्त्रार्थ चल रहा है।ये क्या उचित है?
🌸🌸 सम्यक उत्तर 🌸🌸
यह बहुत ही संतोषजनक है। शास्त्रार्थ जितने होते रहेंगे पाखंड उतना दूर भागेगा। शास्त्रार्थ का अर्थ होता है जन-जन तक शास्त्रों के सही-सही अर्थ पहुंचे। शंकाओं का समाधान हो।सभी प्रेम पूर्वक धर्म का आचरण कर सकें।
🌼🌼 शास्त्र जिज्ञासा 🌼🌼
पर इस शास्त्रार्थ में तो एक विद्वान दूसरे विद्वान की खींचा-तानी।अपने को विद्वान दूसरे को मूर्ख कह रहे हैं?
🌸🌸 सम्यक उत्तर 🌸🌸
यह उचित नहीं है। विद्वानों को एक दूसरे की व्यक्तिगत जीवन शैली पर कटाक्ष न करके शास्त्र सम्मत बात ही रखनी चाहिए। क्योंकि शास्त्रार्थ कोई युद्ध नहीं अपितु अपने अपने पक्ष को शास्त्र प्रमाणों के साथ रखना और जो सत्य हो उसे ग्रहण करना ही मानवता है।इसे व्यक्तिगत हार-जीत व प्रतिष्ठा का विषय बनाने से सामाजिक हानि होती है और विद्वानों पर श्रद्धा समाप्त होने लगती है समाज दिशा विहीन होने लगता है।
🍁🍁 आत्म-निवेदन 🍁🍁
मेरे पास आर्य समाज के कर्मठ, लगनशील, धर्मानुरागी आदरणीय सतीश चौरसिया जी का एक लेख आया है।इस लेख में 🌿आदरणीय स्वामी विवेकानंद रोजड़ 🌿वालों का एक संवाद है उस पर आदरणीय सतीश चौरसिया जी ने मुझे इस पर अपने विचार देने का अनुरोध किया है। मैंने इस लेख को बहुत सावधानी से पढ़ा है।अब मैं इस लेख के संबंध में जो भी लिख रहा हूं वह पक्षपात रहित व वैदिक सिद्धांतों की रक्षा करते हुए लिखा रहा हूं। यदि इसमें मैंने कुछ ग़लत लिखा तो मुझे शास्त्र प्रमाणों के साथ ही यह बताने की कृपा की जाए कि मैं कहां पर गलत हूं जिसे मैं सहर्ष स्वीकार कर लुंगा।
यदि मैंने सत्य व प्रमाण सहित लिखा है तो उसे बिना मान-प्रतिष्ठा के भय से रहित होकर स्वीकार करें। क्योंकि सत्य के ग्रहण करने व असत्य के छोड़ने में सदा उद्यत् रहना चाहिए। सर्वप्रथम देखते हैं कि स्वामी विवेकानंद जी रोज़ वाले क्या लिखते हैं
🪷 स्वामी विवेकानन्द जी 🪷 अनेक बार लोगों में यह चर्चा चलती है,कि *बहुकुंडीय यज्ञ करना कराना वैदिक है या अवैदिक?*
मेरा पक्ष है कि *यह वैदिक है.*
इस संदर्भ में मैं अपना पक्ष एक स्वतंत्र लेख के माध्यम से प्रस्तुत करता हूं। मुझे मालूम है, बुद्धिमान लोग तो मेरे लेख से लाभ उठाएंगे, और अज्ञानी लोग इसका व्यर्थ खंडन करेंगे। मुझे उसकी चिंता नहीं है। *मैं अपना कर्तव्य निभाते हुए, जो सत्य है उसका कथन करूंगा।* मेरा बुद्धिमानों से निवेदन है, कृपया इस मेरे लेख से लाभ उठावें। यह लेख तीन भागों में प्रस्तुत किया जाएगा।
🌲🌲 निष्पक्ष समीक्षा 🌲🌲
स्वामी जी लिखते हैं कि मेरा पक्ष बहु कुंडीय यज्ञ वैदिक है।इस कथन पर हमें कोई आपत्ति नहीं। क्योंकि स्वामी जी की यह मौलिक स्वतंत्रता है कि वह इसे सही कहें या ग़लत!
मगर दुख इस बात का है कि स्वामी जी कह रहे हैं बुद्धिमान लोग मेरे लेख का लाभ उठायेंगे अज्ञानी लोग खंडन करेंगे! स्वामी पहली बात यह है कि आप खुद ही अपने आप को विद्वान कह रहे हैं जो आपको शोभा नहीं देता। दूसरी बात जो आपका खंडन करे उसको आप अज्ञानी कह रहे हैं।आप तो न्याय दर्शन यू ट्यूब पर पढ़ाते हैं क्या यही न्याय है कि जो आपकी गलत बात का खंडन करे वो अज्ञानी है। वास्तव में यह आपका विद्याभिमान मात्र है।
आप कहते हैं बुद्धिमान इस लेख का लाभ उठायेंगे। जबकि आपके लेख को पढ़कर लगता है बुद्धिमान आपको ही सत्य को ग्रहण करने की प्रेरणा करेंगे।
🏵️ स्वामी जी का लेख भाग-१🏵️
प्रश्न — *बहुकुंडीय यज्ञ करना चाहिए या नहीं?*
उत्तर — *जी हां, अवश्य करना चाहिए।*
जरा सोचिए, यदि सुबह 7:00 बजे 100 व्यक्ति अपने-अपने घर पर यज्ञ करें, तब क्या उन यज्ञकुंडों की संख्या 100 नहीं हो जाएगी? तब क्या वह बहुकुंडीय यज्ञ नहीं कहलाएगा? और यदि वही 100 व्यक्ति किसी दिन एक ही स्थान पर इकट्ठे बैठकर अपना अपना यज्ञकुंड रखकर यज्ञ करें, तब भी वह बहुकुंडीय यज्ञ होगा। अंतर केवल इतना ही होगा, कि प्रतिदिन तो सब लोग अपने अपने घर में यज्ञ करते हैं, आज एक स्थान पर इकट्ठे बैठकर कर रहे हैं। बहुकुंडीय यज्ञ तो प्रतिदिन हो ही रहा है। केवल स्थान का ही तो अंतर है! *अपने-अपने घर में यज्ञ करें, तो पुण्य मिलेगा। यदि इकट्ठे बैठकर करेंगे, तो पाप लगेगा। कितनी हंसने की बात है यह!*
जब अपने घर में सुबह 7:00 बजे 100 व्यक्तियों का बहुकुंडीय यज्ञ हो सकता है, तो एक दिन इकट्ठे बैठकर क्यों नहीं हो सकता? जैसे जब अपने-अपने घर में भोजन खा सकते हैं, तो इकट्ठे बैठकर भोजन क्यों नहीं खा सकते? उत्सव आदि के अवसर पर इकट्ठे बैठकर भोजन खाते ही हैं न! ऐसे ही किसी दिन एक स्थान पर इकट्ठे बैठ कर यज्ञ भी कर सकते हैं। इसमें व्यर्थ का कुतर्क उठाना, तो केवल मूर्खता की ही बात है।
जब किसी संस्था में वार्षिक उत्सव आदि अवसर पर 100 / 200 व्यक्ति उपस्थित हो जाते हैं, और आप उन्हें भोजन खिलाते हैं, तो उस समय वे सभी लोग क्या एक ही थाली में भोजन खाते हैं? या सबके लिए अलग-अलग 100 / 200 थालियां लगाई जाती हैं? आप कहेंगे – सबके लिए अलग-अलग थालियां लगाई जाती हैं। *तब वह भोजन एकथालीय नहीं होता, बल्कि अनेकथालीय होता है।*
इसी प्रकार से जब किसी संस्था में 100 / 200 व्यक्ति उपस्थित हों, और वे सब यदि यज्ञ हवन करना चाहें, अथवा वे यज्ञ प्रशिक्षण प्राप्त करना चाहें, तो क्या वे 100 / 200 व्यक्ति एक ही यज्ञकुंड में हवन करेंगे? अथवा उनको एक ही यज्ञकुंड में प्रशिक्षण दिया जाएगा? नहीं। तब उनके लिए अनेक कुंड लगाने पड़ेंगे। *जब भोजन अनेकथालीय हो सकता है, तो यज्ञ अनेककुंडीय क्यों नहीं हो सकता? इसमें कुछ भी आपत्ति नहीं है।*
🌲🌲 निष्पक्ष समीक्षा -१🌲🌲
आप लिखते हैं यदि सुबह सात बजे १०० व्यक्ति हवन करेंगे तो हवन कुंड १०० नहीं हो जायेंगे?
मेरे प्यारे स्वामी जी ये आप अपने मन से यदि सुबह १००यज्ञ करेंगे ऐसा गणित कहां से लाते हैं।क्या आप पौराणिक हैं? तब तो बात ही समाप्त हो जाती है। यदि आप आर्य विद्वान हैं तो आपने महर्षि दयानंद सरस्वती जी के ग्रंथों को पढ़ा होगा! फिर भी मैं आपको 🌾 संस्कार विधि के सामान्य प्रकरण का लेख दे रहा हूं।
स्वामी जी लिखते है यदि आपको १ लाख आहुति करनी हो तो चार -चार हाथ का चारों ओर सम चौरस चौकोण कुंड ऊपर और उतना ही गहिरा और चतुर्थांश नीचे अर्थात् तले में १(एक) हाथ चौकोण लम्बा चौड़ा रहे!
आदरणीय स्वामी जी महर्षि दयानंद सरस्वती जी कह रहे हैं कि एक लाख आहुति भी एक ही कुंड में देना चाहिए।आप कह रहे बहु कुंड? किसको माने! महर्षि दयानंद जी को या आपको। मैं तो यहां तक कह रहा हूं आपने अभी तक १०० कुंडो में भी एक लाख आहुति नहीं दी होगी और महर्षि दयानंद सरस्वती जी महाराज कहते एक लाख आहुति भी एक ही कुंड में दो।उस कुड का गणित भी समझा दिया है।अब चाहे वह यज्ञ घर में करो या बाहर! यह तो यजमान के सामर्थ्य के ऊपर निर्भर करता है।
इकट्ठे बैठकर यज्ञ करने का कहीं भी विरोध नहीं है ये तो आपने अपने मन से लिखा है।बहु कुंडीय का विरोध है इकट्ठे का विरोध तो किसी विद्वान ने नहीं किया है।
स्वामी जी आपको अपने क्षणिक शब्द ज्ञान का इतना अभिमान है कि आप बात -बात पर लोगों को अज्ञानी व मूर्ख कहते हैं।ये शब्द संन्यास धर्म पर चलने वालों को शोभा नहीं देता फिर भी आप स्वतंत्र हैं!
आपका भोजन का उदाहरण यज्ञ पर ठीक नहीं बैठता। भोजन की आचार संहिता अलग है और यज्ञ की आचार संहिता अलग है। हजार थालियों का भोजन पकता तो एक ही कुंड में है।उसी प्रकार हजार यजमानों की आहुति एक ही कुंड में होनी चाहिए ऐसी संगति आपको लगानी चाहिए थी।
बहु कुंडीय यज्ञ व यज्ञ प्रशिक्षण दोनों में जमीन -आसमान का अंतर है। यहां भी विचारणीय बात यह है कि यज्ञ का शाब्दिक ज्ञान एक श्यामपट पर होगा।केवल प्रशिक्षण हेतु बहु-संखय्क कुंड आप बना सकते हैं मगर यह शास्त्रार्थ 🌴 बहु कुंडीय यज्ञ पर है प्रशिक्षण 🌴 पर नहीं। अपने बात को मनाने के लिए प्रकरण से विपरीत जाना अपने साथ ही छल करने जैसा है।
आप चार वेद। छः शास्त्र।उपांग। ग्यारह उपनिषद। ब्राह्मण ग्रन्थ।मनु स्मृति। व्याकरण शास्त्र।गृह्य सूत्र।आप्त पुरुषों। महर्षि दयानंद सरस्वती आदि के प्रमाण 🌴 बहु कुण्डीय 🌴यज्ञ के पक्ष में देते हैं आप पर गर्व होता। मगर आप तो अपने कुतर्कों को ही शास्त्र बनाने में समय नष्ट कर रहे हैं।
🍁 स्वामी विवेकानंद जी 🍁
प्रश्न – एक एक व्यक्ति को अलग-अलग यज्ञ सिखाया जाना चाहिए, तब एक ही कुंड लगाना पड़ेगा, बहुत सारे कुंड नहीं लगाए जाएंगे।
उत्तर – क्या विद्यालय में एक एक विद्यार्थी को एक-एक अध्यापक अलग-अलग पढ़ाता है, या 50 विद्यार्थियों को एक ही कक्षा में बैठाकर एक ही अध्यापक एक साथ पढ़ाता है? *जब एक अध्यापक एक कक्षा में 50 विद्यार्थियों को एक साथ पढ़ाता है, तब आप उसमें आपत्ति क्यों नहीं उठाते?*
*इसी प्रकार से एक विद्वान पंडित भी यदि अनेक यजमानों को एक साथ यज्ञ करना सिखाता है, और क्रियात्मक रूप से प्रशिक्षण देने के लिए अनेक यज्ञकुंड लगाता है, तब आप उसमें आपत्ति क्यों उठाते हैं? तब भी आपको आपत्ति नहीं उठानी चाहिए। क्योंकि अनेक यज्ञकुंड लगाकर एक साथ सबको प्रशिक्षण देना, यह कार्य भी प्रत्यक्ष प्रमाण के अनुकूल ही है, विरुद्ध नहीं है।*
🌲🌲 समीक्षा 🌲 🌲
प्रशिक्षण एक अलग प्रकरण है। इसमें भी एक कुंड में अनेक विद्यार्थियों को प्रशिक्षण दिया जा सकता है। यदि आप चाहें तो मुझे आमंत्रित कर सकते हैं मैं आपको प्रत्यक्ष करके दिखा दुंगा कि एक कुंड में कैंसे अनेक विद्यार्थियों को प्रशिक्षण दिया जा सकता है।
🍁🍁 स्वामी विवेकानंद जी 🍁🍁
वेद कहता है, *कृण्वन्तो विश्वमार्यम्।।* संपूर्ण संसार को आर्य बनाओ। जब आप सबको आर्य बनाएंगे, तो सबको यज्ञ नहीं सिखाएंगे? क्या यज्ञ सिखाए बिना सब लोग आर्य बन जाएंगे? जब सारे संसार भर को आर्य बनाना हो, तो सबको यज्ञ का प्रशिक्षण देना ही होगा। तो एक कुंड में सबको कैसे प्रशिक्षण देंगे? स्कूल कॉलेज में जब अनेक विद्यार्थियों को कंप्यूटर सिखाते हैं, तो एक कंप्यूटर पर सबको शिक्षा नहीं दी जाती, तब बहुत से कंप्यूटर रखने पड़ते हैं। तब आप उसका विरोध क्यों नहीं करते? *इसलिए सैंकड़ों व्यक्तियों को जब यज्ञ प्रशिक्षण देना होगा, तो वह भी एक कुंड में नहीं दिया जा सकता। तब भी अनेक कुंड लगाने ही पड़ेंगे।*
ज़रा बुद्धि पूर्वक विचार करें। शांति से और निष्पक्ष भाव से विचार करें, तो आपको अपनी भूल समझ में आ जाएगी। *जब एक साथ अनेक विद्यार्थियों को पढ़ाया जा सकता है, तो एक साथ अनेक यजमानों को यज्ञ क्यों नहीं सिखाया जा सकता? सिखाया जा सकता है।*
*इसलिए बहुत सारे कुंड एक साथ लगाकर अनेक यजमानों को यज्ञ प्रशिक्षण भी दिया जा सकता है। इसमें कोई भी आपत्ति नहीं है।* क्रमशः।
🌲🌲 समीक्षा 🌲 🌲
स्वामी जी महाराज संपूर्ण विश्व को आर्य केवल 🌾बहु कुंडीय यज्ञ 🌾 से नहीं बनाया जा सकता है। उसके लिए आपको 🕉️ पंच -महायज्ञों 🕉️ का प्रशिक्षण देना होगा।
स्वामी जी महाराज हम एक ही टी वी पर हजारों लोगों को सिनेमा दिखा सकते हैं।एक ही कम्प्यूटर पर अनेकों लोगों को कम्प्यूटर सिखा सकते हैं।
हां अपने -अपने घर पर स्वतंत्र रूप से करने के लिए सबके पास अलग कम्प्यूटर,टी वी,यज्ञ कुंड होना ही चाहिए। मगर इसमें बहु कुंडीय का विचार ही नहीं पैदा होता है। अतः 🌾 बहु कुंडीय यज्ञ 🌾 यज्ञ में पाखंड को ही जन्म देता है जिसमें यज्ञ के विधि -विधान का पालन असंभव है।
🏵️ स्वामी जी-लेख भाग -२ 🏵️
प्रश्न — महर्षि दयानंद जी ने बहु कुंडीय यज्ञ का कहीं विधान नहीं किया है?
उत्तर — *संस्कार विधि के गृहाश्रम प्रकरण में शाला कर्म विधि में लिखा है, उनका भाव है कि *जब नए घर में प्रवेश करें, तो पांच कुंड बनाने चाहिएं।* वहां महर्षि दयानंद जी का बहुकुंडीय यज्ञ का विधान देख लीजिए।
अनेक बार लोग कहते हैं कि *यह बात महर्षि दयानंद जी ने कहीं नहीं लिखी।* ऐसे अज्ञानी लोगों के लिए यह उत्तर है, कि वे लोग शास्त्रों की परंपरा नहीं जानते, और नहीं समझते। *केवल ऋषि दयानंद जी जो लिखेंगे, बस वही प्रमाण होता है क्या?* अरे भोले भाइयो! शास्त्रों में आठ प्रमाण लिखे हैं। केवल एक ही प्रमाण नहीं है। जैसे कार के सारे पुर्जे एक ही चाबी Spanner 🔧 से नहीं खुलते, ऐसे ही सारी बातें केवल एक ही शब्द प्रमाण से सिद्ध नहीं होती। *आठ प्रमाणों में से शब्द प्रमाण तो केवल एक है। और उसमें से भी महर्षि दयानंद जी के वचन तो शब्द प्रमाण का भी केवल एक भाग है। बाकी वेदों और ऋषियों के भी तो शब्द प्रमाण हैं! उनके अतिरिक्त प्रत्यक्ष प्रमाण अनुमान प्रमाण अर्थापत्ति प्रमाण आदि बहुत से प्रमाण हैं, जिनसे बहुत सारी बातें सिद्ध होती हैं।* इसलिए ऐसा कहना अपनी मूर्खता का प्रदर्शन करने वाली बात है, कि *यह बात महर्षि दयानंद जी ने कहीं नहीं लिखी।*
कुछ लोग कहते हैं कि *यह बात वेदों में कहीं नहीं लिखी।* उनके लिए भी यही उत्तर है, जो मैंने ऊपर लिखा है, कि सारी बातें वेदों में नही
🌲🌲 निष्पक्ष समीक्षा -२🌲🌲
स्वामी जी यहां भी आपने उन लोगों को पुनः अज्ञानी! कहकर संबोधित किया है? इतना ज्ञान का अहंकार लेकर आप मोक्ष का दिवा -स्वप्न देखना बंद कर दीजिए।
रही बात आपकी तो ध्यान से पढ़िए उत्तर को। आपने संस्कार विधि के गृहाश्रम प्रकरण में जो शाला विधि का प्रमाण दिया है उसमें भी अपनी बुद्धि को स्वामी दयानंद जी से अधिक दिखाने का श्रम किया है। स्वामी जी ने पांच यज्ञशाला बनाने का आदेश नहीं दिया है।यह अलग बात है कि जब आप जोड़ करेंगे तो पांच होंगे। दूसरी बात पांच यज्ञ कुंड अनिवार्य है ऐसा भी नहीं लिखा है! नीचे पढ़ें।
जब घर बन चुके,तब उसकी शुद्धि अच्छे प्रकार करा, चारों दिशाओं के बाहर ले द्वारों में 🔥चार वेदी 🔥 और एक वेदी घर के मध्य बनावे,🍆 अथवा 🍆 तांबे का वेदी के समान कुंड बनवा लेवें कि जिससे सब ठिकाने एक कुंड में ही काम हो जायें!
🧘 महर्षि की महानता 🧘
स्वामी विवेकानंद जी आपने तो महर्षि दयानंद सरस्वती जी महाराज को समझने की आवश्यकता ही नहीं समझी। स्वामी जी जानते थे कि भविष्य में आप जैसे लोग बहु कुंडीय यज्ञ के नाम पर समाज में नया पाखंड फैला सकते हैं इसलिए उन्होंने 🍆अथवा एक ही कुंड 🍆 लिख दिया। महर्षि दयानंद सरस्वती जी यज्ञ को घर-घर पहुंचाना चाहते थे और इतना सरल बना दिया कि हर आदमी यज्ञ कर सके। इसलिए केवल १६ आहुतियों वाला दैनिक अग्निहोत्र बनाया।न कि बहु कुंडीय जंजाल।
हर घर यज्ञ होना ही चाहिए मगर बहु कुंडीय यज्ञ उसका विकल्प नहीं है।आप किसी मैदान में प्रदर्शनी की तरह१०० कुंडीय यज्ञ न करके १०० परिवारों में यज्ञ कराने का संकल्प लें देखो सारा विश्व आर्य बन जायेगा।
रही बात वेद में लिखने की कि हम हरियाणा, करनाल वा पानीपत रहें। स्वामी जी वेद में यह लिखा होता है कि मनुष्य को कहां रहना चाहिए? अगर वह जगह हरियाणा, करनाल वा पानीपत में हो तो वहां भी रह सकते हैं।वेद में सब सत्य विद्याएं है और यज्ञ भी उनमें एक विद्या है मगर बहु कुंडीय नहीं।
🏵️ स्वामी विवेकानंद लेख भाग-३🏵️
कुछ लोग कहते हैं, *यज्ञ तभी हो सकता है जब कुंड के चारों ओर यज्ञ करने वाले बैठे हों, अन्यथा वह पाखंड है।* ऐसे लोगों से पूछना चाहिए, *जब घर में यज्ञ करने वाले केवल दो ही व्यक्ति हों पति और पत्नी। तब क्या दो व्यक्ति बाजार से भाड़े पर लाएंगे हवन करने के लिए? और जब वे दो व्यक्ति पति-पत्नी यज्ञ करेंगे, तो क्या वह यज्ञ नहीं कहलाएगा? क्या वह पाखंड कहलाएगा?* बिना विचार किये, ऋषियों के विरुद्ध, न जाने कैसी कैसी मूर्खता की बातें लोग करते हैं। उनकी अज्ञानता पर हमें तो दया आती है।
🌲🌲 निष्पक्ष समीक्षा -३🌲🌲
स्वामी जी। यज्ञ की व्यवस्था व यज्ञ व्यक्तिगत दो अलग-अलग बातें हैं। व्यवस्था इस प्रकार है कि –
जो एक हो तो उसका🪷 पुरोहित ।दो हो तो🪷 ऋत्विक, पुरोहित 🪷 तीन हो तो 🪷 ऋत्विक, पुरोहित, अध्यक्ष 🪷 और जो चार हो तो होता,अध्वर्यु,उदगाता और ब्रह्मा।
अब रही बात घर करने की। वहां भी स्वछंद व्यवस्था नहीं है महाराज! ऋषि लिखते हैं कि यदि पति -पत्नी को किसी कारण अलग अलग परिस्थितियों में यज्ञ करना पड़े तो एक मंत्र को दो बार पड़े। इसलिए आपसे निवेदन है कि पुलावी ख्याल न बनाएं। यहां भी आप अपने तकिया कलाम मूर्ख कहने से मजबूर हुए हैं।
🍁🍁 स्वामी विवेकानंद जी 🍁🍁
प्रश्न — बहुत से पंडित लोग इस कारण से बहुत कुंड लगाते हैं कि उन्हें बहुत से यजमान मिलें और वे खूब धन कमाएं। अधिक धन कमाने के उद्देश्य से वे ऐसा करते हैं।
उत्तर — यदि वे ऐसा करते हैं, तो इसमें भी कोई दोष नहीं है। क्या एक व्यापारी एक नगर में अपनी दो चार पांच दुकानें नहीं लगाता। क्या रिलायंस बाटा टाटा बिरला डालमिया आदि अनेक बड़े-बड़े व्यापारी पूरे देश में अपनी अनेक दुकानें और शोरूम नहीं चलाते? जब वे धन कमाने के उद्देश्य से अनेक दुकानें खोलते हैं, तब तो आप उनका विरोध नहीं करते? फिर एक आर्य विद्वान पंडित का विरोध क्यों करते हैं? क्या यह बुद्धिमत्ता है? क्या उस पंडित को अपना जीवन चलाने के लिए परिवार की रक्षा के लिए बच्चों की पढ़ाई और अन्य सुविधाओं के लिए धन नहीं चाहिए? तो अधिक धन कमाने के लिए यदि वह अनेक कुंड लगाकर बहुकुंडीय यज्ञ कराता है, तो आपको कष्ट क्यों होता है? *वह अपने परिश्रम से धन कमा रहा है, आपकी जेब नहीं काट रहा, आपका धन नहीं छीन रहा, फिर आप को उससे कष्ट क्यों है?* जैसे अन्य व्यापारियों को धन कमाने का अधिकार है, ऐसे ही एक विद्वान ब्राह्मण पंडित को भी धन कमाने का अधिकार है। उसे भी सुखपूर्वक अपना परिवार चलाना है। और उसका यह कार्य वेदों और ऋषियों के अनुकूल है, प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों के अनुकूल है, इसमें कोई भी दोष नहीं।
🌲🌲 निष्पक्ष समीक्षा 🌲🌲
यज्ञ से धनोपार्जन करना धार्मिक कृत्य है खासकर जो गृहस्थाश्रम में रह रहे हैं। मगर बहु-कुंडीय यज्ञ से ही धन आता है इसका गणित तो आपका ही है।एक मैदान में ५००कुंड में ५०० यज्ञमान बनाकर उनसे फीस के रूप में दक्षिणा लेना धार्मिक कृत्य है या ५०० परिवारों में यज्ञ-हवन -सत्संग करके यज्ञमान से श्रद्धापूर्वक दक्षिणा लेना उचित है? स्वामी जी आप भी ज़रा विचार कर लीजिए!
🍁🍁 स्वामी विवेकानंद जी 🍁 🍁
महर्षि मनु जी ने ब्राह्मण के छह कर्म लिखे हैं। जिनमें से एक *यज्ञ कराना* भी लिखा है, और वह उसका व्यवसाय है। आपको इसलिए जलन होती है, क्योंकि आपको इस व्यवसाय में धन नहीं मिल पाया। *दूसरों पर व्यर्थ आरोप लगाकर अपनी जलन जनता को न दिखाएं, इसी में आपका भला है। अन्यथा जनता आपकी बुद्धि पर हंसेगी।*
🌲🌲 निष्पक्ष समीक्षा 🌲🌲
स्वामी जी अपने प्रयोजन की सिद्धि में आप महर्षि मनु की आधी ही बात लिखकर पाप कर्म कर रहे हैं शायद इसका आपको अंदाजा भी नहीं।
केवल यज्ञ कराना ही नहीं उसके साथ यज्ञ करना भी लिखा है मगर उसे आपने पकड़े जाने के भय से नहीं लिखा! मैंने सैंकड़ों पुरोहितों को नजदीक से देखा है कि वो ३६५ दिन दूसरों के घरों में हवन कराते हैं मगर अपने घर में न करते हैं न कराते हैं विद्वानों को बुलाकर।इस व्यवसाय से आपको क्या मिल रहा है!
महर्षि देव दयानंद सरस्वती महाराज ने आर्यों को धन कमाने के लिए 🌼 पंचमहायज्ञ विधि🌼 संस्कार विधि 🌼 गो -करुणानिधि जैसा विशाल साहित्य दिया है।इसके आधार पर आप धन कमायें तो आपकी सात पीढ़ी बैठकर खायेगी।इसके बाद भी आप 🌴 बहु कुण्डीय 🌴 यज्ञ करके कालाधन क्यों कमाना चाहते हैं ये तो आप जैंसे संन्यासी ही बता सकते हैं।
🍁🍁 स्वामी विवेकानंद जी 🍁 🍁
जब कोई अंडे मांस शराब की दुकान चलाता है, जो कि वेद विरुद्ध कार्य है, तब उसका तो आप विरोध नहीं करते। और कोई व्यक्ति यज्ञ कराकर पैसे कमाए, जो कि वेदानुकूल कार्य है, तो उसमें आपको जलन होती है। *अपनी बुद्धि पर विचार तो करें, आप क्या बोल रहे हैं?*
*अधिक धन कमाने में जब आप उन व्यापारियों का विरोध नहीं करते, वेद विरुद्ध व्यवसाय करने वाले अंडे मांस शराब बेचने वालों का विरोध नहीं करते, तो एक आर्य पंडित विद्वान का विरोध क्यों करते हैं, जो वेदोक्त व्यवसाय करके धन कमा रहा है?*
अनेक कुंड लगवा कर धन कमाने पर आप जिस पंडित ब्राह्मण विद्वान का विरोध करते हैं, कल को यदि यही पंडित आपके विरोध से दुखी होकर ब्राह्मण का व्यवसाय छोड़कर, जब अंडे मांस और शराब की दुकान चलाएगा, तब आपकी बोलती बंद हो जाएगी। तब आप कुछ नहीं बोलेंगे। इतनी ही बुद्धि है आप में? कि अच्छे लोगों का और अच्छे वैदिक कार्यों का विरोध करें।
*आप द्वारा इस प्रकार का वैदिक श्रेष्ठतम यज्ञ आदि कार्यों का विरोध किया जाना, आप की बुद्धि की स्वस्थता पर प्रश्न चिह्न लगाता है।* आशा है, अपने पक्ष पर आप गंभीरता से पुनः विचार करेंगे। *और ऋषियों के वैदिक सत्य को स्वीकार करेंगे, कि बहुकुंडीय यज्ञ करना कराना प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों के अनुकूल है, विरुद्ध नहीं।* लेख समाप्त।
🌲🌲 निष्पक्ष समीक्षा 🌲🌲
स्वामी जी महाराज आपको कुछ भी पता नहीं।आप तो टिकट लगाकर हालों में दर्शन शास्त्रों को बेचते हैं।कभी आपने आर्य समाज के भजनोपदेशकों / उपदेशकों को देखा ही नहीं। गांव/गली/शहरों में जाकर हमारे प्रचारकों ने लाखों लोगों का मांस/अंडा/शराब छुड़वाया है और रात-दिन न्यून से न्यून दक्षिणा में गर्मी,वर्षा,सर्दी , बाल-बच्चों की परवाह न करके वैदिक धर्म के प्रचार में संलग्न हैं।क्या आप में हिम्मत है इस तरह गांव -गांव गली मैं वैदिक धर्म का प्रचार प्रसार करने की।एक दिन मच्छर काट लेगा दूसरे दिन ही मैदान छोड़कर कर भाग जायेंगे!
जो ब्राह्मण है वो अपना व्यवसाय कभी नहीं छोड़ता। क्योंकि ब्राह्मण नाम जाति का नहीं होता! गुण कर्म स्वभाव का नाम है ब्राह्मण।आप तो दर्शन शास्त्र पढ़ाते हैं। कोई भी पदार्थ अपने स्वभाव को नहीं छोड़ता। अग्नि का स्वभाव गर्मी है क्या वो छोड़ देती है उसको! हां जो ब्राह्मण नहीं है ढोंगी है वो छोड़ भी दें तो कोई हानि नहीं। इसलिए आपसे निवेदन है कि आपको पास कोई शास्त्रीय प्रमाण है 🌸 बहु कुंडीय यज्ञ 🌸 का उसे प्रस्तुत कीजिए हम उसे सहर्ष स्वीकार करेंगे अन्यथा हमारे साथ मिलकर सत्य को स्वीकार कर सबको समझायें कि घर -घर यज्ञ करें।सोलह संस्कार करें और वेद विरुद्ध 🪷 बहु कुंडीय यज्ञ 🪷 का सिद्धांत त्यागें।दूसरा निवेदन आपसे है कि आप विद्वान बनें रहें मगर किसी को 🌻 मूर्ख -अज्ञानी 🌻 जैंसे शब्दों से संबोधित न करें। अपने संन्यास धर्म की मर्यादा बनाए रखें।
🍁अति-विशेष 🍁
स्वामी जी आपको बताना चाहता हूं। आर्य समाज के वैज्ञानिक विद्वान डां सत्यव्रत स्वामी सत्यप्रकाश जी अतीत में बहु कुंडीय यज्ञ का खंडन कर चुके हैं। वर्तमान में आदरणीय पं०महेंद्र पाल जी। आदरणीय रवीन्द्र जी व उनकी टीम इस कार्य को प्रमाण सहित कर रहे हैं आप को यदि यह ग़लत लगता है तो आर्ष ग्रन्थों का प्रमाण दीजिए। मगर तुकबंदी वाली कविता मत लिखिए महाराज!
विदुषामनुचर
आचार्य सुरेश जोशी वैदिक प्रवक्ता
आर्यावर्त साधना सदन पटेल नगर दशहराबाग बाराबंकी उत्तर प्रदेश।