अनुराग लक्ष्य, 6 अप्रैल
सलीम बस्तवी अज़ीज़ी,
मुम्बई संवाददाता ।
मुद्दत गुजर गई, कोई ऐसे खुशनुमा सुबह नहीं देखी, जिसमें सूरज अपनी तमाजत के साथ हंसता और मुस्कुराता हुआ दिखाई दिया हो। साथ ही सुरमई शाम अपनी तमाम शोखियों के साथ खिलखिलाती नज़र आई हो। यह बात मैं इस लिए नहीं कह रहा हूं, कि मैं एक पत्रकार और गीतकार हूं, बल्कि मैं इस लिए कह रहा हूं, कि मैं भी आपकी तरह ही एक इंसान हूं, जिसके सीने में भी एक दिल है, जिसे अपने माज़ी में आज भी बहुत कुछ खोने का गम सताता है और रुलाता है।
एक शाम तुम्हारा साथ हुआ बारिश की चंद बूंदों के साथ
और दिल के झरोंको पे उभरने लगे
कुछ महकते और खनकते जज़्बात।
आज खिड़की से मैने फिर
उसी चांद को देखा है
जिसकी चांदनी में हुई थी
तुम्हारी और हमारी पहली मुलाकात ।।
उस दिन सर्द हवा के झोंको
ने एहसास कराया था तुम्हारा प्यार
और, देखते ही देखते दूर आसमानों में एक नक्श उभरा था,
जिसमें सिमट गईं थी, पूरी की पूरी कायनात ।।।
,,,,,,, सलीम बस्तवी अज़ीज़ी,,,,,,,,,,,,
,,,,,,,,लिरिक्स राइटर, मुंबई,,,,,,