इल्ज़ाम लगाऊँ भी तो क्या 

इल्ज़ाम लगाऊँ भी तो क्या

सजा सुनाऊँ भी तो किसको

जिनसे दिल का नाता जोड़ा

वो ही निकले निष्ठुर मन स्वामी

पहली बार नजर का मिलना

पहला पहला प्यार बन गया

हमने ही तो घर द्वार दिखाया

रंग बिरंगी दुनिया के सुनहरे

सपन सलोने मिलकर सजाए

जिसमें बोई प्रेम की क्यारी

दीप एक अंधियारे में जलाया

मन के अंधियारे को मिटाने

हमको ये मालूम नहीं था

नेह का दीप जल न पाएगा

आँखो के सम्मुख था अंधियारा

इल्ज़ाम लगाऊँ भी तो क्या

सज़ा सुनाऊँ भी तो किसको

लग्न पातिका भी दिखलाई

तारों के संग सजी बरातें

सात वचन की सातों कसमें

मिलकर हमने भी थी खायी

फिर जाने क्या बात हुई जो

भूल गए तुम सारी कसमें

प्राणनाथ तुम ही हो मेरे

फिर भी वन में फिरी अकेले

अग्नि परीक्षा देकर भी तो

विश्वास कहाँ मैं करवा पायी

अब मेरे धीरज की सीमा

लांघ रहा है आज बताऊँ

इल्ज़ाम लगाऊँ भी तो क्या

सज़ा सुनाऊँ भी तो किसको

धरती से निकली थी वैदेही

आज उसी की गुहार लगाऊँ

नहीं रहना इस मृत्युलोक में

आज समाना है तुझमें ही

धरती चीत्कार कर उठी फिर

अंक भरा था उसने आज

लेकर चली सिया अपने धाम

आँखे सबकी थी पथराई

सिया विरह में अयोध्या रोई

दोष भला किसका था यहाँ

मूक बने जो अब तक विद्वान

इल्ज़ाम लगाऊँ भी तो क्या

सजा सुनाऊँ भी तो किसको

जिनसे दिल का नाता जोड़ा

वो ही निकले निष्ठुर मन स्वामी

स्वरचित एवं मौलिक रचना

अनुराधा प्रियदर्शिनी

प्रयागराज उत्तर प्रदेश

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *