पुस्तक समीक्षा “सब तेरे सत्कर्मी फल हैं” काव्य संग्रह के झरोखे से 

भारतीय काव्य अनंत अनुभूतियों का एक ऐसा महाग्रंथ है जिसमें सत्कर्मों से अल्प सुरभित भाव भी महार्णव सदृश अर्थ गांभीर्य धारण कर लेते हैं ।श्री संतोष श्रीवास्तव ‘विद्यार्थी’ जी द्वारा विरचित ‘सब तेरे सत्कर्मी फल हैं ‘ काव्य संग्रह भी ऐसी ही भावानुभूतियों का शाब्दिक दर्पण है ।यह दर्पण भी ऐसा है जो व्यक्तिगत जीवन में वैश्विक समस्याओं को न केवल दर्शाता है बल्कि मानवीय सौंदर्य को निखारने के लिए समाधान भी प्रस्तुत करता है। ‘मन लागे पर काज ‘ पंक्ति व्यक्तिगत नहीं है । यह ऐसे जनमानस के लिए आशा का वह स्रोत है जो उन्हें भावी जीवन में पावनतापूर्ण कार्य करने एवं उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करने के लिए प्रेरित करती है। वर्तमान सामाजिक परिवेश में जहाँ अर्थसिद्धि की उत्कट भावना के वशीभूत लोग गलाकाट प्रतियोगिता में डूबकर अपने नैतिक दायित्वों को भूलते जा रहे हैं वहाँ कवि का यह कहना कि – ‘वो त्याग भूल जाऊँ है मेरी बेईमानी’ दिग्भ्रमित समाज के लिए किसी अलौकिक प्रकाश पुंज से कम नहीं हो सकता। लोगों को सामाजिक रूढ़ियों से मुक्त करनी की परंपरा का अंत होना घातक होगा । सत्कर्म का परिणाम इसलिए भी अनंत है क्योंकि हमारे आज के कार्यों का प्रभाव हमारी नियति को तय करता है । नीयत और नियति का गहरा संबंध है। हमारे आसपास ऐसे लोगों की कभी भी कमी न होगी जो कविता को मात्र शब्दों का व्यवस्थापन समझेंगे लेकिन इससे बड़ा सत्य यह है की रचनाधर्मिता दबाव में निखरती और पुष्पित-पल्ल्वित होती है। संभवत: यही कारण है कि कवि की अंतरात्मा से अकस्मात् ही -‘छवि एक झिलमिलाई’ जैसी पंक्ति उद्भूत हुई। आज जब वैश्विक स्तर पर अशांति का वातावरण बना हुआ है तो ऐसी स्थिति में -‘शक्ति बने सहचरी’ की आकांक्षा नए भारत के निर्माण में आधी दुनिया कहे जाने वाली उन नारियों को समर्पित प्रतीत होती है जिनके लिए आज भी विकास कर पाना दूर की कौड़ी मालूम होती है। भारतीय गर्व ,गौरव और गरिमा के संचयित दस्तावेज़ से ‘जय बुंदेल धरा रखवाले’ जैसे भाव की प्रस्तुति बहुत ही ओजपूर्ण बन पड़ी है। वैश्विक ताप के बढ़ती समस्या एवं प्राकृतिक असंतुलन की समस्या बताने से अधिक यह कहना कि- ‘बिरछा खूब लगइयो’ निश्चित रूप से कवि की विराट चिंतन शक्ति एवं जन-मन को तैयार करने का सफल प्रयास है। काव्य संग्रह में यथार्थ भावों की विपुलता इतनी है कि बोली,शैली की प्रस्तुति भी अनूठा आभास देती है।ऐसे उदात्त चिंतन एवं लेखन के लिए मैं हृदयतल की अनंत गहराइयों से श्री संतोष श्रीवास्तव ‘विद्यार्थी ‘जी को साभार धन्यवाद देता हूँ और उत्तम स्वास्थ्य के साथ उत्कृष्ट लेखन की मंगल कामना करता हूँ।

भूपेश प्रताप सिंह

वरिष्ठ संपादक –

(हिंदी भाषा एवं साहित्य)

दिल्ली

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