ग़ज़ल
चला है लब पे सजा के तराना होली का।
ज़रा सा खोल दे दिल का खजाना होली का।
जो तन को लाल करे और मन को बासंती।
गुलाल ऐसा बदन पे लगाना होली का।।
जरा सी बात ही से रूठ कर गया था कल।
जो आज आया है लेकर बहाना होली का।।
चली बयार है फागुन की चार सू गोरी।
कहीं न रोक ले तुझको दीवाना होली का।
बचेगा कैसे कोई भी ख़ुशी के रंगों से।
दीवाना साध रहा है निशाना होली का।।
जुनूने रंग चढ़ा है मेरे ख्यालों पर।
सुनाओ कोई पुराना फसाना होली का।।
विनोद उपाध्याय हर्षित