प्यार दिलबर का बे हिसाब आये- असलम तारिक

ग़ज़ल

जागती आँखों में भी ख्वाब आये
पैकरे हुस्न ला जवाब आये

रब के अहकाम भूलने से ही
मुश्किलें ज़ीस्त में अज़ाब आये

कैकटस का लगाया है पौदा
उसमें मुमकिन नहीं गुलाब आये

नाज़ करता हूँ अपनी क़िस्मत पे
प्यार दिलबर का बे हिसाब आये

सिर्फ माँ बाप की ज़ियारत से
ज़िन्दगी में बहुत सवाब आये

खिल उठे चेहरे हैँ किसानों के
जब गरजते हुए सहाब आये

हर तरफ थी चमन में वीरानी
आप के आने से शबाब आये

बद गुमानी से ज़ीस्त में तारिक़
रंज गम दर्द इजतिनाब आये

 

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