मरूधर में पानी”-बाल कृष्ण मिश्र “कृष्ण”

मरूधर में पानी”
जीवन का विस्तार तुम्हीं से,
हँसता यह संसार तुम्हीं से।
यह सारा जगत् तुम्हीं से है,
ख़ुशियों का संसार तुम्हीं से।
सुख दुःख जीवन की गति है,
पर सपनों का विस्तार तुम्हीं से।
तुम अर्थ शक्ति की द्वेतक हो,
पर श्रद्धा और विचार तुम्हीं से।
शुष्क दृष्टि व शून्य सृष्टि हो,
तो भावों का है ज्वार तुम्हीं से।
तुम ही दुनियाँ की रानी हो,
तुम ही मरूधर में पानी हो।
तुम हँसती हो जग हँसता है,
तुम रोती हो जग रोता है।
जग शिक्षा की हो आदि तुम्हीं,
जग का सारा नवाचार तुम्हीं हो।
जीवन का विचलन पथ से,
धरती का फिसलन पग से।
होता जब निःसहाय जगत,
तब आता है उत्साह तुम्हीं से।
तुम नहीं तो क्या जग कल्पित है,
जग का सारा विस्तार तुम्हीं से।
जड़ चेतन की अब कौन कहे,
हरि का भी अवतार तुम्हीं से।
इन शब्दों में सामर्थ्य कहाँ,
जो आपको स्वयं में बांध सके।
पर चिन्तित और दुखी हैं कृष्ण,
क्यों विचलित संसार है अब।
क्या सामर्थ्य भूल गये अपना,
या कृपा समेट लिये अपना।
क्यों कुदृष्टि हुई है दुनियाँ पर,
जब सारा संस्कार तुम्हीं से।
जीवन का विस्तार तुम्हीं से,
हँसता यह संसार तुम्हीं से॥

बाल कृष्ण मिश्र “कृष्ण”
०८.०३.२०२४
बूंदी राजस्थान।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *