उठे हैं पांव बढ़ने को मंजिल की ओर

उठे हैं पांव बढ़ने को मंजिल की ओर

डगर में छांव मिले न मिले, चलो देखा जाएगा।

मनपसंद छोड़ा है और सही करते गए हैं

अब मनपसंद मिले न मिले, चलो देखा जाएगा।

निभाया है जी भर ऐ जिंदगी तेरा साथ

अब तेरा साथ मिले न मिले, चलो देखा जाएगा।

गरीबी में भी तकलीफें खरीदी हैं सुकून बेचकर रईसी से मन मिले

न मिले, चलो देखा जाएगा।

इस इंतज़ार के शहर में, धीरता बचा कर रखी है

सब्र को विश्राम मिले न मिले, चलो देखा जाएगा।

कमाए हैं रिश्ते बहुत मैंने दौलत समझकर

अब वो दौलत मिले न मिले, चलो देखा जाएगा।

इक उम्र ही तो रहना हैं मुझे भी यहां.. अंकिता वो इक उम्र अब मिले न मिले, चलो देखा जाएगा।

अंकिता तिवारी

कवयित्री अयोध्या राष्ट्रीय कवि संगम

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