ग़ज़ल
प्यार का रिश्ता यकीनन वो निभा सकता नहीं ।
आईना भी मैं उसे उसका दिखा सकता नहीं।।
सर पटकती रहती हैं तन्हाईयाँ दहलीज़ पर।
बोझ ऐसी जिंदगी का मैं उठा सकता नही।।
सर बख़म होता है जो अल्लाह के आगे नदीम।
अह् ले दुनिया में वो सर कोई झुका सकता नहीं।।
करता रहता है दिखावा वो वफ़ा के नाम पर।
जो वफ़ा की राह में गर्दन कटा सकता नहीं।।
जो गिरा देता है अपने शौक़ में अपना वकार।
कोई भी उस शख्श की इज़्ज़त बचा सकता नहीं।।
काम जो आया नहीं है जीस्त में मां बाप के।
कुछ भी कर ले वो दुआ हर्षित कमा सकता नहीं।।
विनोद उपाध्याय हर्षित