अयोध्या।18 दिसंबर सुबह श्री अजय पाण्डेय की टीम द्वारा रामलीला के प्रसंग राम रावण युद्ध रावण वध तत्पश्चात् विभीषण को लंका का राजा बनाया ,अपराह्न के प्रवचन सत्र का सुभारम्भ श्री रसिक पीठाधीश्वर श्री जन्मेजय शरण दास महाराज ने दीप प्रज्ज्वलित कर के किया, प्रवचन सत्र में उन्होंने कहा कि” महाराज जनक और देवताओं के राजा इंद्र में मित्रता थी ,महराज जनक के निमंत्रण पर इक बार देव राज इंद्र जनक पुर में प्रवेश किया तो देखा की रत्नों से सज्जित स्वर्ण सिंहासन पर एक व्यक्ति स्नान कर रहा था तो इंद्र ने समझा की ये राजा जनक के सिवा और कौन हो सकता है उन्होंने कहा की जय हो विदेह राजा की स्नान कर रहा व्यक्ति दंडवत होकर इंद्र से बोला की मैं विदेह राजा नही बल्कि मै नगर का सफाई कर्मचारी हूं राजा इंद्र ने नगर व नगर वासियों का ऐसा वैभव व संपन्ता देख कर इंद्र वही से लौट गए उनकी हिम्मत जनक पुर में प्रवेश की नही हुई” प्रवचन सत्र में मानस मंजरी साध्वी सृष्टि लता ने कहा कि” काम का अस्तिवत वहां है जहां भगवान राम जी को भुला दिया गया हो, जो सरकार श्री राम को हृदय में रखते हैं वो काम से बच जाते हैं” श्री सुरेन्द्र पाल ने कहा की ” प्रणाम करने से भगवान की किरपा होती है, तुलसी की महत्ता बताते हुए कहा की तुलसी में तीन अक्षर हैं जिसमें तु का अर्थ आप यानी की भगवान राम , ल से लक्ष्मण व स से सीता , जिनके घर पर तुलसी का बिरवा हो उनके घर की चौकीदारी भी होता रहती है “व श्री लक्ष्मण दास ने परवचन के माध्यम से राम प्रण विवाह पर चर्चा की ,श्री पवन कुमार शास्त्री ने पुष्प वाटिका व धनुष भंग के बारे में बताया, श्री राम शरण दास , श्री वरुण दास, श्री नारायण मिश्र, व श्री मोती लाल शास्त्री ने प्रवचन किया.. मंच का संचालन श्री कमलेश सिंह ने किया तत्पशात सांस्कृतिक संध्या का सुभारम्मभ जी ने दीप प्रज्ज्वलित कर के किया सांस्कृतिक कार्यक्रम में श्री शीतला प्रसाद वर्मा की टीम के द्वारा फरुवहाई लोक नृत्य की प्रस्तुती दी अगले क्रम में अवधी लोक गायन के छेत्र से सुश्री वंदना मिश्र वह ने लोक भजनों को सुनाया , कार्यक्रम की अंतिम प्रस्तुती व समापन श्री सुरेश शुक्ला के स्वर में गए भजनों से हुआ सांस्कृतिक संध्या का संचालन श्री देश दीपक ने किया ,
इस मौके पे समिति से कमलेश सिंह , नंद कुमार मिश्रा डा.जनार्दन उपद्धया , एस एन सिंह संजयोक आशीष कुमार मिश्रा समेत अन्य लोग मौजूद रहे।