ग़ज़ल
फिर कोई गुल खिलाए बैठे हैं।
बेसबब मुस्कुराए बैठे हैं।।
इन अंधेरों में रोशनी के लिए।
ख़ूने दिल हम जलाए बैठे हैं।।
सब करिश्मा है इश्क़ का ऐ मियां।
खुद से खुद को छुपाए बैठे हैं।।
बात कुछ भी नहीं हुई उनसे।
जाने क्यू तिलमिलाए बैठे हैं।।
दर्द जिसका न लोग सह पाऐ।
हम वहीं चोट खाए बैठे हैं।।
नाम कितने गिनाऊ मैं हर्षित।
ज़ख़्म जो दिल पे खाए बैठे हैं।।
विनोद उपाध्याय हर्षित