इस दौर ए इंकलाब में आओ कलम के साथ, सलीम बस्तवी अज़ीज़ी,,,,

अनुराग लक्ष्य, 22 अक्टूबर
कलम ने हमेशा समाज में फैली बुराइयों और कुरीतियों को दूर करने के साथ साथ एक सोवस्थ समाज की कल्पना में अहम भूमिका निभाई है। खासकर वोह कलम जब किसी पत्रकार या साहित्यकार के हाथ में हो तो यह ज़िम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। मैं जानता हूं कि आज पत्रकारिता दिवस नहीं है लेकिन मेरी पत्रकारिता ने मुझसे आज यह कहा कि मैं इस मौज़ू पर आपसे कुछ बात करूं, कि हम जैसे कलमकारों का समाज के प्रति जागरूकता पैदा करने में क्या योगदान होना चाहिए, प्रस्तुत हैं मेरे कुछ कतात और मुक्तक, जो शायद पत्रकारिता जैसे पेशे के सम्मान में आपके ह्रदय को छू लें ।
आ गई चलते चलते कहां ज़िंदगी
थी जहां मेरी मंज़िल, वहां ज़िंदगी
मेरे हाथों में दे सिर्फ मेरा कलम
रखले तू पास तीर ओ कमां ज़िंदगी,,,,,
इस दौर ए इंकलाब में आओ कलम के साथ
दुनिया के हर एक गोशे में छाओ कलम के साथ
हो सामने सत्ता कोई या जुर्म का पहाड़
हर एक को आइना दिखाओ कलम के साथ,,,,,
ज़िंदगी की जंग में या मौत की ललकार में
जो लिखा हो सत्य होना चाहिए अख़बार में
मैं तो यह हरगिज़ गवारा कर नहीं सकता कभी
तुम कलम को बेचकर जाओ किसी दरबार में,,,,
ज़िंदगी का जब कभी उनवान लिखना
सुबह गीता, शाम को कुरआन लिखना
हो कलम जब भी तुम्हारे हाथ में,
तुम यहां सम्मान को सम्मान लिखना,,,,
अच्छा हुआ इस मुल्क ने अख़बार दे दिया
हम जैसे मुफलिसों का मददगार दे दिया
इतना ही नहीं आईनों की शक्ल में,सलीम,
हर गोशे गोशे में एक कलमकार दे दिया,,,,,
…….. सलीम बस्तवी अज़ीज़ी ……

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