ग़ज़ल
वो अचानक याद आया देर तक।
और फिर उसने रुलाया देर तक।।
नींद मेरी आंखों से गुम हो गई।
गीत वो जब गुनगुनाया देर तक।।
उनके चौखट पर पड़े जिस दम क़दम।
घर हमारा जगमगाया देर तक।।
जो भी कहना था सब आंखों ने कहा।
बोल वो कुछ भी न पाया देर तक।।
इन अघेरो में भटक जाता मगर।
एक जुगनू जगमगाया देर तक।।
नश्शा ए ज़र में वो इतना चूर था ।
ज़िन्दगी में लड़खड़ाया देर तक।।
विनोद उपाध्याय हर्षित