बिना बोले हमारी बात कल तक जो समझते थे ।
हमारी सिसकियों को आज ,पढ़ना भी नहीं आता ।।
ज़माने की करे क्या बात यह तो पागल है।
लगा कर आग इसको तो बुझाना भी नहीं आता ।।
हमारी सिसकियों,,,,,,,,,,,,,,
यहाँ हर आदमी के नये अन्दाज़ दिखते हैं।
खड़े है भीड़ में लेकिन उन्हें चलना नहीं आता।
हमारी सिसकियों,,,,,,,,,,,,,,
हर शख़्स के दो अलग किरदार होते हैं।
वफ़ा की बात करते है वफ़ा करना नही आता।।
हमारी सिसकियों,,,,,,,,,,,,,,
Dr Anumodita shukla