बदलते साल और बदलते लोग

“बदलते साल और बदलते लोग”

बहुत अजीब रहा यह साल, कुछ गहरे जख्म दे गया,

हंसते हुए चेहरों के पीछे, छिपे हुए सच कह गया।

किसी ने गिरगिट की तरह अपना रंग बदल लिया,

तो किसी ने वक्त के साथ अपना स्वभाव बदल लिया।

जिन्हें अपना समझा था, उन्होंने ही नजरें फेर लीं,

भीड़ तो बहुत थी पास, पर तन्हाइयों ने घेर लीं।

किसी ने अपनी पसंद बदली, तो किसी ने रास्ता,

दिखावा रह गया बाकी, न रहा दिल से वास्ता।

पर सबसे अजीब तो वो था, जिसने मुझे ही बदल दिया,

मेरे सीधे-सादे विश्वास को, पत्थर की तरह कर दिया।

पर शुक्रगुजार हूँ मैं, इन बदलने वाले चेहरों का,

इन्होंने ही तो रास्ता दिखाया, सुनहरे कल के सवेरों का।

अब न मलाल है किसी के जाने का, न रंग बदलने का,

हुनर सीख लिया है मैंने भी, अब संभल कर चलने का।

बीता साल एक सबक था, जो दिल में बस गया,

नया साल एक मौका है, जो खुद को निखारने को रह गया।

 

ज्योती वर्णवाल

नवादा (बिहार)