वो लौट के घर न आया

शहीद मनोज कुमार जी की शहादत को नमन करते हुए, यह कविता उनके परिवार के इंतजार और उस खालीपन को समर्पित है जो एक वीर के जाने के बाद पीछे रह जाता है:

शीर्षक: “वो लौट के घर न आया”

दहलीज पे बैठी पत्नी आज भी राह निहारती है,

सिंदूर की लंबी उम्र की, वो मन्नतें उतारती है।

बच्चों ने पूछा, “माँ! पापा कब आएंगे घर लौटकर?”

वो सिसक के रह गई, बस तस्व़ीर को पुकारती है।

बूढ़े पिता की लाठी टूटी, माँ की आँखें पथरा गईं,

जिस लाल को पाला था, उसकी खबरें अमर हो गईं।

भाई की हिम्मत टूट गई, बहन की राखी सूनी है,

घर के आँगन की हँसी, आज गम में डूब सी गई है।

वतन की मिट्टी चूमकर, वो फर्ज अपना निभा गया,

तिरंगे में लिपटकर शेर, नवादा की शान बढ़ा गया।

वो सरहद पर तो जीत गया, पर घर में तन्हाई छोड़ गया,

देश के गौरव की खातिर, वो दुनिया से रिश्ता तोड़ गया।

नमन है ऐसे वीर को, जिसने लहू से इतिहास लिखा,

हर भारतीय के दिल में, उसने बलिदान का अहसास लिखा।

शहीद मनोज अमर रहेंगे, जब तक ये आसमान रहेगा,

उनकी कुर्बानी का कर्जदार, हमेशा ये हिंदुस्तान रहेगा।

शहीद मनोज कुमार (ITBP) को भावपूर्ण श्रद्धांजलि।

ज्योती वर्णवाल

नवादा (बिहार)