महेन्द्र कुमार उपाध्याय
अयोध्या। धार्मिक नगरी अयोध्या एक बार फिर समाज और मानवता के लिए प्रेरणा का केंद्र बनी है। कंचन भवन पीठाधीश्वर महंत विजय दास ने एक असहाय बेटी वंदना का विवाह संपन्न कराकर न केवल पिता का कर्तव्य निभाया, बल्कि समाज को यह भावुक और सशक्त संदेश भी दिया कि “अनाथ या असहाय बेटियां अकेली नहीं हैं, उनके पीछे पूरा समाज और धर्मगुरु खड़े हैं।”
यह प्रेरणादायक विवाह समारोह आज श्री हनुमानगढ़ी देवकली स्थित श्री अष्टभुजी दुर्गा मंदिर में आयोजित हुआ। बस्ती जिले के सोनवर्षा गांव की वंदना का विवाह अयोध्या के देवकली, ककरहा निवासी राकेश के साथ हिंदू रीति-रिवाजों से संपन्न हुआ।
पिता बनकर किया कन्यादान
इस विवाह में सबसे भावुक क्षण वह था जब महंत विजय दास ने स्वयं पिता की भूमिका निभाई और अपने हाथों से कन्यादान की रस्म पूरी की। इस दौरान वे स्वयं भी भावुक हो उठे। वर-वधू को आशीर्वाद देते हुए उन्होंने उनके नए जीवन में सुख-समृद्धि और मंगल कामनाएं दीं। कन्यादान के दौरान अपने संकल्प और संदेश को दोहराते हुए महंत विजय दास ने कहा, “बेटी का विवाह पिता का सबसे बड़ा कर्तव्य होता है। असहाय वंदना का पिता बनकर आज मैंने यह कर्तव्य निभाया है। समाज को चाहिए कि हर बेटी को अपनी बेटी समझकर उसका सहारा बने। यही सच्ची सेवा और सबसे बड़ा धर्म है। समाज के लिए बनी नई मिसाल महंत विजय दास के इस मानवीय कार्य को विवाह में उपस्थित साधु-संतों और श्रद्धालुओं ने ऐतिहासिक और प्रेरणादायक बताया। सभी ने एक स्वर में माना कि यह कार्य समाज में नई सोच और सकारात्मकता का संदेश देगा, जो संतों की भूमिका को केवल आध्यात्मिक कार्यों से आगे ले जाता है। महंत विजय दास, जो धार्मिक और आध्यात्मिक कार्यों के साथ-साथ समाजसेवा और मानवीय मूल्यों के लिए जाने जाते हैं, उन्होंने असहायों की मदद कर और जरूरतमंदों को संबल प्रदान कर यह सिद्ध कर दिया कि “संत सिर्फ मंदिरों तक सीमित नहीं, बल्कि समाज की हर बेटी के पिता और हर असहाय का सहारा होते हैं।