मानवीय संवेदनाओं को उकेरती ‘हिमकिरीट’ काव्य संग्रह 

पुस्तक समीक्षा

मानवीय संवेदनाओं को उकेरती ‘हिमकिरीट’ काव्य संग्रह

 

‘हिमकरीट’ काव्य संग्रह पर चर्चा से पहले इसके के नाम की चर्चा करना चाहूँगा, क्योंकि पुस्तक का नाम दो शब्दों से मिलकर बना है ।

‘हिम’ शब्द का अर्थ है (बर्फ) और ‘किरीट’ का मतलब (मुकुट) से है, जिसका शाब्दिक अर्थ है बर्फ का मुकुट। अक्सर यह शब्द हिमालय पर्वत या अन्य ऊँचे पहाड़ों पर जमी हुई बर्फ के लिए उपयोग किया जाता है, लेकिन यहाँ कवि ने अपनी रचनाओं का सिरमौर गुलदस्ता तैयार किया है ।जो वास्तव में कवि की बहुत ही गहरी सोच को प्रदर्शित करता है।

‘हिमकिरीट’ पुस्तक एक अद्वितीय और रोचक पुस्तक है, जिसमे कवि ने अपने अनुभवों को अभिव्यक्ति के रूप में उजागर किया है । संग्रह की भाषा-शैली और संरचना अद्वितीय है और पाठकों को पुस्तक अपनी ओर आकर्षित करती है।

कवि ने अपने संग्रह को आपने माता पिता को समर्पित भाव से उनके चरणों मे शब्दों के पुष्प अर्पित किए है । उन दोनों दैवीय आत्माओ को नमन वंदन और मनमोहक चित्र पुस्तक का गौरव बड़ा दिया।

प्रकाशकीय ने भी लेखक और प्रकाशक के बीच के संबंधों को विस्तार देते अपने शब्दों की माला से पुस्तक की गरिमा को बढ़ा दिया है। कवि का जीवन परिचय अपने कई गौरव लिए हुए है, जो कवि की उपलब्धि को सुशोभित कर रहा है ।

कवि किस विचारधारा के हैं, उन्होंने अपनी पुस्तक की भूमिका में स्वयं ही लिखा है, जो काबिले तारीफ है।

पुस्तक की वीथिका को सहज सरल और स्पष्ट तरीके से श्री अशोक मिश्र जी ने उत्कृष्ट लेख लिखा ।

शुभाशंसा श्री हंसराज सिंह हंस ने बड़े मार्मिक ढंग से प्रदान किया ।

हिमाद्री गौरव के रूप में डॉ. रामकरन साहू सजल ने व्यक्त किया है उनका यह लेख पुस्तक की विशेषता की ओर प्रकाश डालता है ।

भावनात्मक दृष्टिकोण से देखें तो बहुत ही सारगर्भित ओर मार्मिक रचनाओं का हिमकिरीट का गुलदस्ता है ।पुस्तक की एक कविता की कुछ पंक्तियों से अंदाजा लगाया जा सकता है –

 

हो राष्ट्र की आराधना ।

शुभ भाव की हो वंदना ।

सरिता का निर्मल नीर हो ।

हिय पर व्यथा की पीर हो ।।

 

कविता के शब्दों में इतनी गहराई छिपी है जैसे जीवंत कहा जा रहा हो और मानो मन- मस्तिष्क में भावो का सुमंदर ही आ गया हो ।

आगे दूसरी कविता को देखिए-

 

आसमान से चुपके से उतर रही है ।

पावस की शाम दबे पाँव

धान के हर भरे खेत …..

 

और कविता को लेते है देखिए किस तरह से चित्रण किया आप भी समझिए

 

मैं लेबर चौराहा हूँ

मुझे कुछ दिख रहे बच्चे

खड़े है जो फ़टे गन्दे कपड़ो में

इस उम्मीद में कोई उन्हें ले जाए ।

 

कवि ने अपने भावों में दुःख भरी व्यथा का वर्णन भी साथ साथ किया है । कवि ने कविताओं में यथार्थ को वर्णात्मक शैली का भी प्रयोग बड़ी कुशलता से कर दिया ।

किस ओर कविता को समझें

कि कितने भावो को जन्म दिए

मन के कोमल भावों को

मृदु शब्दों के जाल न समझो

मिलन विरह के गीतों को

मधुऋतु पतझड़ के गीत समझो ।।

 

कवि ने कविता में शब्दों की जादूगरी इस तरह बिखरी की पुस्तक को पढ़ते पढ़ते मन नहीं भरा ,एक और रचना में किस तरह से कहा-

मोतियों की धार झरी

सफल धरा हरी भरी

मन्द मन्द पवन चली

फूल उठी कली कली

महक रही गली गली

वसुंधरा खिली खिली

गगन से झड़ी लगी

मोतियों की धार झरी ।।

 

यह कवि की सोच का ही प्रतिफल है कि इतने सुंदर स्वच्छ भावों को पिरो दिया।

कवि के अनुसार जो थक गए, सो गए , अपने जीवन को निराश के भँवर में डुबकी लगा रहे हैं lवहाँ भी कवि की सोच कैसे भाव प्रकट करती है गौर करें –

 

मत कहो मुझसे न होगा

गलत है अपनी शक्ति नकारना

अन्याय है उसके साथ ….

 

यह वही भाव है जो मनुष्य के निराश जीवन को फिर से ऊर्जा देने के लिए काफी है ।

जब प्रेम के सागर में कवि उतरता है तो वहां कवि ने कैसे भाव प्रकट किए !

क्या जगत को बाँध लेंगे प्रेम के धागे तुम्हारे ।

क्या इसे पागलपन कहे या कवि का जगत के प्रति प्रेम, तभी तो आगे फिर कहा

हम कम देख पाते हैं

धुआँ- धुआँ हथेलियाँ की रेखाएँ उसे याद दिलाती है ।

उन वादों को जो हमने किये थे ।

 

यहाँ ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कवि अपने वचन और वादों के प्रति कितनी वफादारी रखता है और जीवन के वास्तविक मूल्यों को कितनी अहमियत देनी चाहिए ।

कोई भी हो उसके जीवन की गतिविधियाँ भिन्न होती हैं ।लेकिन जीवन के प्रति हम संवेदनशील हैं lकवि ने अपनी कविताओं में संवेदनाओं को जिक्र बख़ूबी किया ।

 

जीवन की गति अलग अलग है फिर भी संग निभाते हैं ।

अलग -अलग भूखण्डों पर सब समान मुस्कराते हैं ।।

 

एक दूसरे से परस्पर प्रेम को उजागर कर अलग ही तरह का संश्लेषण किया है।

समय की रफ्तार को किसी अंदाज में कवि ने अपने शब्दों में संजीदगी के साथ पिरोया है ।

 

कब रुका सूरज रुका कब चाँद

क्या कभी था रुका सागर नाद

आज उसका ह्दय तल

कर रहा जयघोष !

 

स्वयं कवि जगा है और दूसरों को किस तरह चेतनता की प्रेरणा दे रहा है ।

तुम जगे क्या, जग उठा संसार

जग उठे हर प्राण

यदि हम कवि के राष्ट्रप्रेम की बात करें तो राष्ट्र प्रेम मानो कूट- कूट कर भरा हो

 

हे! भारत माता के सपूत

हे! निज जननी के लाल

सीमा पर हलचल काफी है

उठ रही ज्वाला की माल

हाल मैं कैसे कह दूँ ।

 

किसी के दर्द से कवि का ह्रदय व्याकुल हो उठता है ।

 

बता कोकिल

क्यों जला तेरा गला

मौन साधे स्वर छिपाए ।

 

वेदनाओं से हिय भर जाता है और गला सूख जाता है मुख से रोने की आवाज भी नहीं निकलती है नीर आँखों में जैसे सूख गया हो ।

और सृष्टि के कण-कण से वनस्पति और जीव -जन्तुओं के प्रति अथाह प्रेम देखिए इस कविता में-

 

हमें लगाव होता है

धन से जमीन से पशु- पक्षियों से

बचपन तो अनोखा होता है ।

 

 

दूसरे के दुःख की पीड़ा को देख कवि कितना निराश हो जाता है और उस पीड़ा को शब्दों से बाँधकर कविता के रूप में ढाल देता है ।

 

वे निराश है

दम निकल रहा है

बच्चे युवा बूढे

पढ़े अनपढ़े गढ़े अनपढ़े

गर्भवती महिलाएँ, बीमार अपाहिज

छोड़ रहें है आशियाने …

 

किस तरह आँसू के मोती कर देता है कवि यह काम जो कि सभी के वश की बात नहीं है ।

 

सीप -सी आँखों में उसके अश्रु मोती बन गए

दबी जो चिर वेदना थी आज उसको कह गए ।।

 

अंत मे मैं इसी निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि पुस्तक में भाषा शैली का भाव पक्ष और कला पक्ष आज के मनुष्य जीवन को कुरेदती हुई मानव संवेदनाओं को उकेरती हुई दिल को झकझोर देने वाली और आत्मचिंतन को अवलोकन करती हुई ,जिंदगी के मायनो को नापती हुई और प्ररेणा से भर देने वाली रचनाओं का सुवासित गुलतस्ता है । मुझे तो यह बेहद पसंद आया।उम्मीद करता हूँ यदि आप भी पढ़ेंगे तो आपको जरूर पसंद आएगा । मैं पाठकगणों और उन नए साहित्यकारों से कहना चाहता हूँ जो साहित्य की परख रखते है , ‘हिमकिरीट’ काव्य-संग्रह जरूर पढ़ें । अपनी प्रतिक्रिया अवश्य लिखें । उपयोगी पोस्ट शेयर करना भी साहित्य सेवा ही है।

 

समीक्षक

डॉ.अमित कुमार बिजनौरी

कदराबाद खुर्द स्योहारा

बिजनौर उत्तर प्रदेश