मेरे शब्दों की यात्रा—आत्मा से साहित्य तक लेखिका: नेहा वार्ष्णेय

 

*मेरे शब्दों की यात्रा—आत्मा से साहित्य तक*

लेखिका: नेहा वार्ष्णेय

“शब्द मेरे लिए केवल अक्षर नहीं हैं, बल्कि भावनाओं की धड़कन हैं, जो दिल से निकलकर आत्मा तक पहुंचती हैं।”

मैंने कभी यह नहीं सोचा था कि एक दिन मेरी पहचान मेरे शब्दों से बनेगी। जीवन की आपाधापी में जब कोई नहीं सुनता था, तब एक डायरी ही मेरी सबसे बड़ी हमराज बनी। वहीं से शुरू हुआ मेरे लेखन का सफर — निष्ठा, दर्द, प्रेम, समाज, स्त्रीत्व और सत्य को शब्दों में ढालने का एक आत्मिक प्रयास।

बचपन से ही पढ़ने-लिखने का शौक था, पर साहित्य से मेरा रिश्ता गहराता गया जब मैंने महसूस किया कि समाज की बहुत सी अनकही आवाज़ों को कोई सुनने वाला नहीं है। मेरी लेखनी उन्हीं आवाज़ों की अभिव्यक्ति बन गई।

अब तक मेरी रचनाएँ देश की कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं, ऑनलाइन मंचों और साहित्यिक आयोजनों में प्रकाशित और प्रस्तुत हो चुकी हैं। मेरी कविताएँ, लघु कहानियाँ और लेख सामाजिक सरोकारों, नारी संवेदना, पारिवारिक रिश्तों और आध्यात्मिक विषयों को केंद्र में रखते हैं। मैंने “माँ”, “नारी: शक्ति या प्रतीक्षा?”, “सादगी में जीवन”, “तारों के नीचे बचपन”, “मैं भी एक बेटी हूँ” जैसी कई रचनाओं के माध्यम से पाठकों से आत्मिक संवाद स्थापित किया है।

इन रचनाओं ने न केवल पाठकों का स्नेह पाया, बल्कि साहित्य जगत के कई वरिष्ठ विद्वानों से भी सराहना प्राप्त की। मेरी कुछ रचनाओं को मंचों पर सम्मानित भी किया गया है, जो मेरे लिए गौरव का विषय है। लेकिन मेरे लिए सबसे बड़ा पुरस्कार तब मिलता है, जब कोई पाठक मुझे लिखता है — “आपकी कविता ने मेरे दिल को छू लिया, ऐसा लगा जैसे यह मेरी ही कहानी है।”

मैं मानती हूँ कि लेखन केवल प्रसिद्धि पाने का साधन नहीं, बल्कि यह समाज और आत्मा से संवाद का माध्यम है। मेरी कोशिश यही रहती है कि मेरी रचनाओं के माध्यम से किसी एक इंसान के जीवन में भी परिवर्तन, सोच या सुकून आ सके, तो मेरा लेखन सफल है।

इस यात्रा में चुनौतियाँ भी कम नहीं थीं — परिवार, जिम्मेदारियाँ, समय का अभाव और बच्चों की जिम्मेदारी। पर जब भी कलम हाथ में ली, उसने मुझे मेरी पहचान याद दिलाई।

भविष्य में मेरी योजना एक संपूर्ण काव्य संग्रह, मेरी कई किताबें प्रकाशित करने की है, जिसमें मेरे विविध अनुभवों और भावनाओं का संग्रह होगा। साथ ही, मैं चाहती हूँ कि नई लेखिकाएँ, विशेषकर महिलाएँ, अपने अंदर की आवाज़ को दबाएँ नहीं — उसे शब्दों में ढालें। इसी उद्देश्य से मैं एक ऑनलाइन मंच की भी शुरुआत करने जा रही हूँ, जहाँ साहित्य प्रेमी एक-दूसरे से सीख सकें और आगे बढ़ सकें।

साहित्य मेरे लिए साधना है, समाज की सेवा है और आत्मा की भाषा है। मेरी यह यात्रा उन सभी लोगों को समर्पित है जिन्होंने मेरी लेखनी को अपनाया, समझा और उसे अपनी भावनाओं का रूप माना।

आप सभी का हृदय से आभार।

– नेहा वार्ष्णेय
(कवयित्री • लेखिका • साहित्य साधिका)
दुर्ग छत्तीसगढ़