अनुराग लक्ष्य, 5 जुलाई
मुम्बई संवाददाता,
सलीम बस्तवी अज़ीज़ी ।
,,,, चले भी आइए पलकें बिछाए बैठे हैं,
हम अब भी राह पे नजरें गड़ाए बैठे हैं,
ज़मीन ओ आस्माँ शम्स ओ क़मर भी आ जाओ,
तुम्हारी चाह में महफिल सजाए बैठे हैं,,,,
मेरी यह उपरोक्त पंक्तियाँ देश के उन सभी पाठकों के सम्मान में हैं जो अनुराग लक्ष्य को पिछले 30 वर्षों से अपना प्यार और दुलार दे रहे हैं।
खुशी की बात है कि बस्ती ज़िले से प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका अनुराग लक्ष्य का 30 वाँ उर्स बस्ती के प्रेस क्लब में 6 जुलाई को बड़े ही जोश ओ ख़रोश के साथ मनाया जा रहा है।
इस सुनहरे अवसर पर मैं अनुराग लक्ष्य के संपादक विनोद कुमार उपाध्याय के सम्मान में इतना ज़रूर कहना चाहता हूँ कि,
,,,, इस दौर ए इंकलाब में आओ क़लम के साथ
दुनिया के हर इक गोशे में छाओ क़लम के साथ
हो सामने सत्ता कोई या जुर्म का पहाड़
हर एक को आईना दिखाओ कलम के साथ,,,
त्वारीख़ शाहिद है इतिहास साक्षी है जब जब किसी इन्सान की सच्चाई ईमानदारी साहस और पराक्रम रँग लाती है तो वोह इंसान इस दुनिया में मानिंद ए आफताब बन जाता है। और यह बात पूरी तरह लागू होती है अनुराग लक्ष्य मासिक पत्रिका के संपादक विनोद कुमार उपाध्याय के ऊपर, जिनके अथक प्रयास का नतीजा है कि देश की आर्थिक नगरी मुंबई में भी सलीम बस्तवी अज़ीज़ी ब्यूरो प्रभारी अनुराग लक्ष्य मुंबई की सरपरस्ती में पिछले 4 वर्षों से अपनी कामयाबी के परचम लहराने के साथ मुंबई के हर खास ओ आम का प्यार पाने में पत्रिका अनुराग लक्ष्य कामयाब हो गई।
मैं यह बात पूरे दावे के साथ कह सकता हूँ कि कुदरत का निज़ाम है कि इंसान जो बोता है, वही काटता है। शायद यही वोह सच्चाई है कि अनुराग लक्ष्य के संपादक विनोद कुमार उपाध्याय के साथ भी यही हुआ।
आज के 30 वर्ष पहले 1995 में जब अनुराग लक्ष्य का पहला अंक आया था तब शायद उन्हें भी इस बात का अंदाज़ा नहीं रहा होगा कि एक दिन यह मेहनत वोह रंग लाएगी कि अनुराग लक्ष्य को पूरे देश का प्यार और दुलार मिलेगा। आज पूरे देश में अनुराग लक्ष्य अपनी कामयाबी के परचम लहरा रही है। मैं उनकी इस असाधारण प्रतिभा को सलाम करता हूँ। पिछले 4 वर्षों से मुंबई वासियों में भी अनुराग लक्ष्य अपना मुकाम हासिल कर चुकी है। मेरी कोशिश तो यही है कि मैं सलीम बस्तवी अज़ीज़ी अनुराग लक्ष्य मासिक पत्रिका को हर एक घर आंगन तक पहुंचा दूँ। और इसका प्रमाण देने के लिए मेरी इन निम्न पंक्तियों के सहारे देखा जा सकता है कि,
अंधियारों में दीप जलाने आया अनुराग लक्ष्य,
सहरा सहरा फूल खिलाने आया अनुराग लक्ष्य।
मिटे ग़रीबी भारत की और देश बने खुशहाल,
जन जन को खुशहाल बनाने आया अनुराग लक्ष्य।
उठो बढ़ो चाहे जितनी भी मुश्किल हों राहें,
मंज़िल पर तुमको पहुंचाने आया अनुराग लक्ष्य।
हाथ में लेके हाथ हमारा बढ़ो तो तुम आगे,
ख़्वाबों को सच करके दिखाने आया अनुराग लक्ष्य।
महक उठे ,अनुराग, यह अपना आओ करें वो काम,
खुशियों की सौगात दिलाने आया अनुराग लक्ष्य।
फेंक दो मायूसी की चादर खुश हो जाओ ,सलीम,
रूठी किस्मत तेरी बनाने आया अनुराग लक्ष्य।
खुशी की बात यह है कि मासिक पत्रिका अनुराग लक्ष्य के 30 वें स्थापना दिवस के शुभ अवसर पर मुंबई वासियों ने जिस प्यार और दुलार को दिया है। मैं सलीम बस्तवी अज़ीज़ी ब्यूरो प्रभारी अनुराग लक्ष्य, हमेशा उनका कर्जदार रहूंगा।