आजकल शादी में इतनी दिक्कत क्यों हो रही है

आजकल शादी में इतनी दिक्कत क्यों हो रही है?

 

शादी – दो व्यक्तियों का एक पवित्र बंधन, जिसमें न सिर्फ दो दिल, बल्कि दो परिवार भी जुड़ते हैं। परंतु आज के समय में, यह पवित्र बंधन पहले की तुलना में अधिक जटिल और चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है। पहले जहाँ लोग शादी को जीवनभर का साथ मानते थे, वहीं आज शादी में खटास, तलाक, अलगाव और असंतोष की घटनाएँ तेजी से बढ़ रही हैं। आखिर इसके पीछे कारण क्या हैं?

बदलती जीवनशैली और सोच

आज का समाज पहले से अधिक स्वतंत्र विचारों वाला हो गया है। महिलाएं आत्मनिर्भर हैं, पुरुष भावनात्मक रूप से अधिक जागरूक हैं, और दोनों की प्राथमिकताएँ भी अलग हैं। रिश्तों में अब बराबरी की अपेक्षा है, जहाँ कोई किसी पर हावी नहीं होना चाहता। यह सकारात्मक बदलाव है, लेकिन जब समझ और संतुलन की कमी हो, तो यही बदलाव टकराव का कारण बनते हैं।

 

आधुनिक जीवन की व्यस्तता ने संवाद को सबसे ज़्यादा प्रभावित किया है। पार्टनर एक-दूसरे से अपनी भावनाएँ, समस्याएँ या अपेक्षाएँ साझा नहीं करते, जिससे गलतफहमियाँ पैदा होती हैं। डिजिटल दुनिया में लोग ऑनलाइन तो रहते हैं, लेकिन दिल से जुड़े नहीं रहते।

सोशल मीडिया ने रिश्तों में अनजाने में ही एक झूठी प्रतिस्पर्धा पैदा कर दी है। जब लोग दूसरों की “हैप्पी कपल” तस्वीरें देखते हैं, तो अपने रिश्ते की कमियों पर ज़्यादा ध्यान जाता है। तुलना की यह आदत असंतोष को जन्म देती है।

 

आजकल जीवनसाथी सिर्फ भावनात्मक सहयोगी नहीं होता, बल्कि करियर में भी साझेदार होता है। जब दोनों अपने-अपने करियर में व्यस्त होते हैं, तो रिश्ते के लिए समय और ऊर्जा कम रह जाती है। काम का तनाव और असंतुलन, वैवाहिक जीवन में दरारें ला सकता हैl पुराने समय में शादी में आने वाली समस्याओं को “समझौते” से सुलझाया जाता था। लेकिन अब लोग आत्मसम्मान और मानसिक शांति को प्राथमिकता देते हैं। जहाँ संघर्ष शुरू होता है, वहाँ रिश्ते को बचाने की जगह लोग अलग होने का विकल्प चुनते हैं।

अभी भी भारत जैसे देशों में शादी सिर्फ दो व्यक्तियों की नहीं, दो परिवारों की होती है। कई बार माता-पिता और रिश्तेदारों का अत्यधिक दखल, नवविवाहित जोड़े के निर्णयों में टकराव उत्पन्न कर देता है l आजकल चिंता, डिप्रेशन, असुरक्षा और पहचान का संकट बहुत सामान्य हो गया है। यदि ये समस्याएँ समय रहते पहचानी न जाएँ, तो शादीशुदा जीवन भी इससे बुरी तरह प्रभावित होता है।

खुले संवाद की आदत डालें – बात करने से ही समाधान निकलता है। चुप्पी रिश्तों को खोखला कर देती है। अपेक्षाओं का संतुलन बनाएँ – न तो खुद से बहुत ज़्यादा अपेक्षा करें, न ही साथी से।

थेरेपी और काउंसलिंग को अपनाएँ यह कमजोरी नहीं, समझदारी की निशानी है।

रिश्ते को समय और स्पेस दें , हर रिश्ता परिपक्व होने में समय लेता है l

शादी एक ऐसा रिश्ता है जो प्रेम, विश्वास, धैर्य और समझदारी की नींव पर टिकता है। बदलते समय में यदि इन मूल्यों को बनाए रखा जाए, तो रिश्ते मजबूत हो सकते हैं। शादी को निभाना एक कला है, जिसमें दोनों साथ मिलकर रंग भरते हैं।

शादी सिर्फ एक दिन का उत्सव नहीं, बल्कि रोज़ निभाने वाला वादा है – जिसमें जिम्मेदारी भी है, और अपनापन भी। मानसिक रूप से परिपक्व हो तभी शादी करें l

 

धन्यबाद

नेहा वार्ष्णेय

दुर्ग (छत्तीसगढ़)