कुदरहा, बस्ती। कलयुग मे केवल प्रेम से भगवान का नाम लेने से प्रभु की कृपा एंव आनन्द की प्राप्ति हो जाती है। प्रेम हमेशा दूसरों को देना सिखाता है लेना नही। प्रेम बांटने से कम होने के बजाय बढ़ता ही जाता है। मनुष्य अगर प्रेम पूर्वक भगवान की भक्ति करे तो उसे सुख और शान्ति मिल जाती है। उक्त सदविचार कथावाचक अमरनाथ महाराज ने लक्ष्मी नारायण महायज्ञ के दौरान श्री राम जानकी मंदिर भरवलिया उर्फ टिकुइया में चल रही श्री राम कथा में चौथे दिन कही। प्रसंग को आगे बढ़ते हुए कहा कि पहले संत जंगलों मे कंदमूल फल खाकर जाड़ा,गर्मी व बरसात मे पेड़ के नीचे तपस्या करते थे।पर आज के संत बड़ी-बड़ी कोठियों मे सुख सुविधाओं का भोग करते हैं। आज लोगों की धारणा बन गयी है कि ये सब सुविधाओं वाले संत है। आज हर मां बाप अपने बच्चों को डाक्टर इंजीनियर बनाना चाहते है लेकिन विवेकानंद, भगत सिंह नही बनाना चाहते। इस संसार मे अपना कोई नहीं है। मां- बाप, भाई-बहन, पुत्र यहां तक कि अपना शरीर भी नही है। इसलिए मनुष्य को तन सवारने के बजाय मन संवारने मे समय लगाना चाहिए।
कथा में महंथ बाबा धीरेंद्र दास, प्रेम चंद्र पांडेय, जीतेंद्र सिंह, राजवंत सिंह, राजजग यादव, पंचराम यादव, भूमिनाथ यादव, रामधनी, रामसनेही चौधरी, सुरेंद्र यादव, अमरजीत यादव, उग्रसेन पाल,नरसिंह, साहब राम, राजमंगल, भालचंद्र शाहिद तमाम लोग मौजूद रहे