श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र में श्रीराम कथा का भव्य आयोजन, कथाव्यास अतुलकृष्ण भारद्वाज ने किया श्रोताओं को भावविभोर

 

महेन्द्र कुमार उपाध्याय
अयोध्या, 5 अप्रैल: श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट द्वारा अंगद टीला पर आयोजित श्रीराम कथा के आठवें दिन कथाव्यास अतुलकृष्ण भारद्वाज ने अपनी ओजस्वी वाणी और मधुर भजनों से विशाल पंडाल को राममय बना दिया। कथा को विस्तार देते हुए उन्होंने देश की वर्तमान परिस्थितियों पर भी व्यापक प्रकाश डाला। कथाव्यास अतुलकृष्ण भारद्वाज ने राणा सांगा पर की गई कथित मूर्खतापूर्ण टिप्पणी की निंदा करते हुए कहा कि हमारे महापुरुषों की वीरता हम सभी के लिए अनुकरणीय है। उन्होंने कहा कि यदि हमारे पूर्वजों के बल और पराक्रम को देखना और समझना हो तो गुरुगोविंद सिंह की तलवार, महाराणा प्रताप का भाला और अयोध्या के हनुमानगढ़ी में संतों के विशाल भाले और तलवारें आज भी मौजूद हैं, जो उनके शौर्य की गाथा गाते हैं। भारद्वाज ने आगे कहा कि भगवान श्रीराम हों या श्रीकृष्ण, सभी ने लोक कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया। आज प्रभु का मंदिर सनातन धर्म के साथ संस्कार और संस्कृति के पुनरुत्थान की स्थापना का प्रतीक है। उन्होंने अयोध्या और जनकपुर के अटूट संबंध को दो शरीर और एक आत्मा का परिचायक बताया। कथा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि यह जीवन को मंगलमय बनाती है और हमारे जीवन को सुंदर बनाती है। श्रीराम जी की लीलाओं का दर्शन, सुनना और देखना मात्र से आत्मशुद्धि होती है। उन्होंने दीन दुखियों की सेवा को ही भगवान की सच्ची सेवा बताया।
कथाव्यास श्री अतुल कृष्ण भारद्वाज ने भगवान श्रीराम द्वारा धनुष भंग, परशुराम-लक्ष्मण संवाद और श्रीराम विवाह के रोचक प्रसंगों को सुनाकर श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया। उन्होंने विश्वामित्र द्वारा श्रीराम को जनकपुरी ले जाने और सीता स्वयंवर में श्रीराम द्वारा धनुष तोड़ने की कथा का वर्णन करते हुए कहा कि इसका अर्थ पूरे विश्व में दुष्टों को सावधान करना था। परशुराम के स्वयंवर सभा में आगमन और श्रीराम-लक्ष्मण से तर्क-वितर्क के बाद परशुराम के संतुष्ट होने और अपनी सामाजिक जिम्मेदारी श्रीराम को सौंपकर स्वयं भक्ति में लीन होने के प्रसंग को भी उन्होंने विस्तार से सुनाया। संत अतुल कृष्ण भारद्वाज ने कहा कि भगवान कण-कण में विराजमान हैं और समाज में व्याप्त बुराइयों को संगठित होकर ही दूर किया जा सकता है, जिस प्रकार श्रीराम ने वनवासियों और आदिवासियों की संगठित शक्ति के द्वारा समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर किया और भगवान कहलाए। उन्होंने राजा जनक द्वारा राजा दशरथ को बारात लाने का निमंत्रण और दशरथ का नाचते-गाते बारातियों सहित जनकपुरी पहुंचने का मनोरम वर्णन किया, जिस पर उपस्थित श्रोतागण भी भावविभोर होकर नाचने गाने लगे।
पूज्य अतुल कृष्ण भारद्वाज ने श्रोताओं से आग्रहपूर्वक निवेदन करते हुए कहा कि जिस संगठित शक्ति के बल पर वनवासी और गिरिवासी बंधुओं ने आपत्ति काल में श्रीहनुमान जी महाराज के नेतृत्व में धर्म की स्थापना और अधर्म के विनाश के लिए स्तुत्य कार्य किया, उसी प्रकार समस्त प्रकार के भेद-भावों से रहित होकर हम सबको जीवन में कुछ महान कार्य करने की ललक पैदा करनी चाहिए, जिससे समाज में व्याप्त ऊंच-नीच और छुआछूत जैसी बुराइयां दूर हो सकें। इस अवसर पर विहिप राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ओमप्रकाश सिंहल, पंजाब के पूर्व प्रांत प्रचारक किशोर जी, अवध प्रांत के प्रचारक प्रमुख यशोदा नंदन, महंत योगी सुरेंद्र नाथ, शरद शर्मा, विनोद जायसवाल, महंत राममिलन दास, महंत संदीप दास, देवेश दास, रामशंकर दास और प्रसिद्ध कथा व्यास सुनील कौशल महाराज सहित बड़ी संख्या में संत और श्रद्धालु उपस्थित थे।