अब कहां प्यार ओ मुहब्बत को जताता है कोई अब कहां प्यार में रोता है और गाता है कोई।
जिसको देखो वही बेज़ार नज़र आता है हौसला कौन यहां किसका बढ़ाता है कोई।
कभी गुल तो कभी तोहफों में दिन गुजरते थे अब कहां रस्म ए मुहब्बत को निभाता है कोई।
दिल के दरवाज़े सभी सल्ब हुए हों जैसे अब कहां चांदनी रातों में नहाता है कोई।
दौर ए हाज़िर में “सलीम” हम भी तो सब भूल गए अब कहां खोवाब मुहब्बत के सजाता है कोई।