ग़ज़ल
हासिल न होगा कुछ तुझे ख़ुद को उबाल कर,
आया हूं तेरे पास मैं सदक़ा निकाल कर।
ख़ैरात कर दी जिसने रियासत की ईंट ईंट,
तू दे रहा है उसको ही सिक्का उछाल कर।
वो दिन गये जब आप हवा पर सवार थे,
है मश्वरा कि अपने को रखिये सम्भाल कर।
मोहतात हो के बात किया कीजीये जनाब,
जो लोग रख्खा करते हैं बातों को चाल कर।
ज़ोख़िम है आस्तीन का रखना क़मीज़ में,
ये तजरूबा हुआ मुझे साँपों को पाल कर।
देती नही है दुनिया किसी बेहुनर को कुछ,
पैसा अगर कमाना है तो कुछ कमाल कर।
हाथों में मेरे देख लो कुछ भी नही नदीम,
क्या मैंने पा लिया है समुन्दर खंगाल कर।
नदीम अब्बासी “नदीम”
गोरखपुर॥