एनडीए और इण्डिया गठबंधन–दोनों को चेतावनी -अजय दीक्षित

यह दुर्भाग्य है कि सन् 2024 के लोकसभा चुनाव में दो प्रमुख पक्ष –इण्डिया गठबंधन और एन.डी.ए. मतदाताओं का मन्तव्य नहीं समझ रहे हैं । जनता ने भाजपा को नकारा नहीं है, उन्हें बहुमत के करीब पहुंचा कर उन्हें फिर से सरकार बनाने का न्योता दिया है । परन्तु जनता ने बिखरे हुए इण्डिया गठबंधन को भी ताकत दी है ।
पिछले दिनों नीति आयोग की बैठक में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने वाक आउट किया, यह कहकर कि जब वे बोल रही थीं तो उनका माइक बंद कर दिया गया । अब इसके उत्तर में तुरंत वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि ममता जी को उनके अनुरोध पर लंच से बोलने का मौका दिया गया और सभी मुख्यमंत्रियों को बोलने का समय निर्धारित था । अब ममता स्वयं एक पार्टिसिपेंट थीं वित्त मंत्री की हैसियत से । वे आयोग की अधिकारी नहीं हैं । आयोग को ही स्पष्टीकरण देना चाहिए ।
असल में मोदी जी के आने के बाद योजना आयोग (प्लैनिंग कमीशन) को भंग कर दिया गया । भाजपा सुभाष बोस का गुणगान करती है । स्वयं बोस ने कहा था कि आजादी के बाद प्लानिंग कमीशन बनना चाहिए जिसके अध्यक्ष नेहरू होंगे । अब नीति का अर्थ है– ‘नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ड्रान्सफॉर्मिंग इण्डिया’ । अब इसमें आयोग शब्द कहां से आ गया । और आयोग से सरकार को इतना ही प्यार था तो योजना आयोग को भंग ही क्यों किया गया । आज आप सरकार की नीति पर कोई टिप्पणी करें तो आप देशद्रोही हैं । हमारे शास्त्रोंमें नेति, नेति का उल्लेख है अर्थात् हम नकारते हुए सत्य तक पहुंचते हैं ।
योजना आयोग और नीति का उद्देश्य देश में संतुलित विकास है ताकि सभी राज्य तरक्की कर सकें । अब बजट में जो पिटारा बिहार और आंध्र प्रदेश के लिए खोला गया है, वह तो स्पष्ट रूप से एन.डी.ए. को साधना ही है । इसमें कोई बुराई भी नहीं है क्योंकि सरकार की स्थिरता देश के लिए परम आवश्यक है ।
असल में भाजपा अपने शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से तो मंत्रणा होती ही रहती है । असल में भाजपा राज्यों में  अधोसंरचना का विकास केन्द्र की सहमति से ही तय होता है । अत: अच्छा हो कि जिन राज्यों में विपक्ष की सरकारें हैं और उनसे प्रधानमंत्री की मंत्रणा नहीं होती उन्हें बोलने का अधिक समय दिया जाये । वैसे भी विपक्ष की ओर से केवल ममता बनर्जी ही नीति आयोग की बैठक में उपस्थित थीं । पंजाब, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, केरल, तमिलनाडु, झारखण्ड, मिजोरम के मुख्यमंत्री आए ही नहीं । तो ममता बनर्जी को नियम का हवाला देकर उन्हें पूरा बोलने न देना, नीति (आयोग) के उद्देश्य के विपरीत है ।
सन् 1973 में जब इन्दिरा गांधी ने लोकसभा चुनाव की घोषणा की तब सारी इंटेलिजेंस रिपोर्ट कहती थीं कि इन्दिरा बहुमत से जीतेगी, परन्तु वे उत्तर प्रदेश की 85 सीटें हार गईं । जनता पार्टी की सरकार में जनसंघ भी साझीदार था । चौधरी चरण सिंह के कारण या आपसी द्वेष के कारण सरकार गिरी तो इसके लिए आज की भाजपा भी जिम्मेदार है । देश के सामने आंतरिक सुरक्षा और नक्सलवाद बड़ी चुनौती है । अब जम्मू भी सेफ नहीं है । कश्मीर तो आर्मी के सहारे चल रहा है ।
आज जनता गुड गवर्नेंस चाहती है । यह तभी संभव है जब पक्ष और विपक्ष में साझेदारी हो । 18वीं लोकसभा के शुरुआती दिनों से मालूम होता है कि पक्ष और विपक्ष झूला झूल रहा है । इसे अंग्रेजी में ‘टिव्डलिगं’ कहते हैं । अगर अगले पांच साल तक यही हलात रहे तो अगले चुनाव में ‘नोटा’ को जीतने वाले की अपेक्षा ज्यादा वोट मिलेंगे । यह पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए लाल बत्ती है ।