ग़ज़ल
एक पत्थर की आशक़ी में हम।
कुछ न कर पाए ज़िन्दगी में हम।।
आप आए तो ये लगा हमको।
आ गए आज रोशनी में हम।।
जीत सकता नहीं कोई दुश्मन।
मात खाए हैं दोस्ती में हम।।
यार पागल कहीं न हो जाए।
तेरे आ जाने की खुशी में हम।।
आदमीयत कहां गई जाने।
ढूंढ पाए न आदमी में हम।।
होश आया है देर में हर्षित।
सब गवा बैठे आशिकी में हम।।
विनोद उपाध्याय हर्षित