🌹 ओ३म् 🌹
*ईश्वरीय वाणी वेद*
ओ३म् अग्नि: पूर्वेभिॠर्षिभिरीड्यो नूतनैरुत। से देवां एह वक्षति।।
ऋ०१/१/२ *पूर्वेभि:* वर्तमान वा पहले समय के विद्वान *नूतनै:* वेदार्थ के पढ़ने वाले ब्रह्मचारी तथा नवीन तर्क और कार्यों में ठहरने वाले प्राण *ऋषिभि:* मन्त्रों को देखने वाले विद्वान उन लोगों के तर्क और कारणों में रहने प्राण इन सभों को *अग्नि* वह परमेश्वर *ईड्य:* स्तुति करने योग्य और यह भौतिक अग्नि नित्य खोजने योग्य है। *स:उत* वही परमेश्वर *इह* इस संसार वा जन्म में *देवान* अच्छी -अच्छी इन्द्रियां विद्या आदि गुण भौतिक अग्नि और अच्छे -अच्छे भोगने योग्य पदार्थो को *आवक्षति* प्राप्त कराता है।
*भावार्थ* जो मनुष्य सब विद्याओं को पढ़ के औरों को पढ़ाते हैं तथा अपने उपदेश से सब का उपकार करने वाले हैं वा हुए हैं वे सब पूर्ण विद्वान शुभ गुण सहित होने पर ऋषि कहलाते हैं ।वह परमेश्वर उत्तम गुणों को तथा भौतिक अग्नि व्यवहार कार्यों में संयुक्त किया हुआ तथा उत्तम भोग के पदार्थों का देने वाला होता है।
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