ग़ज़ल
मिलती रहती है ज़फा सबको वफा के बदले।
ज़र्फ़ को तौल रहा है वो सज़ा के बदले।।
एक लम्हे में तबीयत मेरी हो जाए सहीह।
वो दुआ दे दे अगर मुझको दवा के बदले।।
भूखा सोता है वो बिस्तर पे वहाकर आंसू।
उसको इनआम मिला है ये कला के बदले।।
आज तक वो कभी हारा ही नहीं दुश्मन से।
सबको देता है मुआफीं जो ख़ता के बदले।।
चाह कर आंखों से रुकते ही नहीं है आंसू।
मैंने पाई है सज़ा ये ही वफ़ा के बदले।।
जिसकी खातिर यहां घुट -घुट के जिए हैं हर्षित ।
बद्दुआ देता रहा है वो दुआ के बदले।।
विनोद उपाध्याय हर्षित