फूल से ज़्यादा हमारी ज़िंदगी में खार हैं- सलीम बस्तवी अज़ीज़ी,

अनुराग लक्ष्य,18 सितंबर ।
शायरी सिर्फ महबूब से बात करने का ज़रिया नहीं, शायरी सिर्फ तंज़ ओ मज़ाह का नाम नहीं, बल्कि शायरी हमेशा वक्त और हालात की अक्कासी करती हुई नजर आनी चाहिए, जिसमें समाज अपना अक्स देखकर हालात ए हाज़रा और वर्तमान परिवेश से अवगत हो सके। आज की मेरी ग़ज़ल में ऐसे ही अशआर आपको देखने को मिलेंगे। मैं सलीम बस्तवी अज़ीज़ी, आपकी मुहब्बतों और समा अतों के हवाले,,,,,,
1/ किस क़दर इस ज़िंदगी के रास्ते दुश्वार है,
फूल से ज़्यादा हमारी ज़िंदगी में खार हैं ।
2 / क्या कहेंगे आप इस बदले हुए हालात पर,
जो हमें बर्बाद करने पर यहां तैयार हैं ।
3/ नफरतों की आग में झुलसा है जिनसे यह चमन,
जाके उनसे पूछिए क्या वोह कभी गमखोवार हैं ।
4/ जो नेजाम ए हिन्द को अब कर रहे हैं तार तार,
हमको तो लगता है कि वोह ज़ेहन से बीमार हैं ।
5/ नफसी नफसी का है आलम, सांस भी रुकने को है,
और, उसपे यह सितम कि हम यहां गद्दार हैं ।
6/ दंग रह जायेंगी आंखें देखकर मंज़र, सलीम,
कैसे कैसे इस सियासत के यहां फनकार हैं ।
….Saleem Bastavi Azizi..Lyrics Writer in Mumbai…

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