ग़ज़ल….
सेतु के स्वाभिमान के ऊपर
इक नदी है निशान के ऊपर
साधु के रूप में हुआ रावण
सब है करूणानिधान के ऊपर
अब वही जंग जीत पाएगा
जो है गीता के ज्ञान के ऊपर
कब तलक यूं ही गिड़गिड़ाओगे
हाथ रख्खो कमान के ऊपर
बस यही रास्ता बचा है यहां
खेल जाना है जान के ऊपर
हरीश दरवेश