*जैविक खेती से सवंर रही किस्मत*

*विनोद कुमार उपाध्याय*
*जैविक खेती से सवंर रही किस्मत*
हाल के वर्षों में किसानों ने अंधाधुंध रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग का धरती का खूब दोहन किया है। जमीन से अत्यधिक उत्पादन लेनें की होड़ के चलते खेतों की उत्पादन कूवत लगातार घट रही है। क्यों की रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग के चलते मिटटी में कार्बांश की मात्र बेहद कम हो गई है। वहीँ स्वास्थ्य के नजरिये से भी रासायनिक उर्वरकों से पैदा किये जाने वाले अनाज और फल सब्जियां नुकसानदेह साबित हो रहें है। कई देशों में कीटनाशकों के नुकसान को देखते हुए उस पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई है। क्यों की फसलों में प्रयोग किये जाने वाले कीटनाशकों के चलते कैंसर और कई तरह की जानलेवा बीमारियाँ भी सामने आई हैं। ऐसे में जरुरत है की जमीन की उत्पादकता को बचाए रखने और स्वास्थ्य को ध्यान में रख कर खेतों में जैव उर्वरकों का प्रयोग किया जाए।
इसी चीज को ध्यान में रख कर उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के एक युवा नें जैविक खेती में मिशाल कयाम की है। वह बस्ती जनपद के एक मात्र किसान है जो फसल में अलग-अलग शूक्ष्म पोषक तत्वों को ध्यान में रख कर खाद और उर्वरकों का निर्माण करते हैं।
बस्ती शहर से मात्र 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बस्ती सदर ब्लाक के गाँव कोइलपुरा के रहने वाले मंगला प्रसाद मौर्य ने उद्यान स्नातक की पढ़ाई कर रखी है। उन्होंने मार्केट को समझा तो पाया की हर व्यक्ति रासायनिक उत्पादों से पैदा किये अनाज और सब्जियां नहीं खाना चाहता है। लेकिन जैविक उत्पादों की अनुपलब्धता लोगों की मजबूरी बन चुकी है। ऐसे में उन्होंने जैविक खेती से जुड़े कई जगहों पर जाकर जानकरी प्राप्त की कई प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भी शामिल हुए। ऐसे किसानों के यहाँ भी भ्रमण किया जो जैविक खेती के जरिये लाभ प्राप्त कर रहें हैं।
जब उन्हें लग गया की जैविक खेती को अगर पूरी तैयारी के साथ किया जाए तो घाटे की संभावना कम होगी। तो उन्होंने जैविक खेती की शुरुआत कर दी उन्होंने जैविक खेती एक बार शुरू की तो इससे मिले लाभ ने इनका हौसला दोगुना कर दिया।
घर पर ही करते है खाद और उर्वरकों का निर्माण- मंगला प्रसाद मौर्य पढ़ाई के दौरान मिले विश्वविद्यालय के अनुभवों जैव उर्वरकों और जैव कीट नाशकों का निर्माण घर पर ही करते हैं। वह अलग-अलग तरीकों से जैविक खाद तैयार करते हैं। उनके द्वारा जो जैव उर्वरक तैयार किए गए हैं उससे उन्हें तमाम तरह के शूक्ष्म पोषक तत्व प्राप्त होते हैं। जिसमें राख से फास्फोरस, सेंधा नमक से जिंक, मैग्नीज वा लोहा गंधक से सल्फर, नीला थोथा से कापर, सुहागा से बोरान, सीप और अंडा से कैल्शियम, त्रिफला से लोहा एवं मैग्नीशियम, त्रिकूट से सल्फर, धान की भूसी से सिलिकन मिलता है।
खेतों में लहलहा रही है फसल- पिछले तीन वर्षों में मंगला प्रसाद मौर्य ने जैविक खेती के जरिये कई तरह की व्यावसायिक खेती करने में सफलता पाई है। वह मौसम के अनुसार तमाम तरह के सब्जियों की खेती करते है। उनके खेतों में उस समय भी फसल लहलहा रही होती है जब बाजार में कई तरह के सब्जियों की आवक बहुत कम होती है। वह व्यापक स्तर पर केला और पपीता की खेती करने में सफल रहे हैं।
वह कई तरह की सब्जियों की खेती करते है। जिसमें लौकी, नेनुआ, पालक, सरपुतिया, सोया, टमाटर, करेला, मटर, गाजर, मूली, सहित दर्जनों तरह की फसलें शामिल हैं। इसके अलावा वह अपने अनाज वाली फसलों में भी खुद द्वारा तैयार की गई जैविक उत्पादों का ही प्रयोग करते हैं।
खेतों से सीधे होती है मार्केंटिंग- मंगला प्रसाद मौर्य द्वारा उगाई गई जैविक फसलों के मार्केटिंग की अगर बात की जाये तो आढती इनके खेतों से ही मंडी मूल्य से ज्यादा रेट पर खरीद कर ले जाते हैं। जिसके चलते उहने मार्केटिंग के लिए किसी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है।
कांति ऑर्गेनिक फॉर्म के नाम से पॉपुलर- मंगला प्रसाद मौर्य द्वारा शुरू किये गये जैविक खेती को उन्होंने कांति ऑर्गेनिक फॉर्म का ब्रांड नाम दे रखा है। कांति शब्द में उनकें माता का नाम छिपा है। इस मसले पर मंगला प्रसाद मौर्य का कहना है की माँ की प्रेरणा से खेती बाड़ी से जुड़ी डिग्री ली, उनको सम्मान देने का इससे बढ़िया जरिया और कुछ हो ही नहीं सकता है।
मंगला प्रसाद मौर्य द्वारा किये जा जैविक खेती से मिली सफलता के मुद्दे पर कृषि वैज्ञानिक डॉ प्रेम शंकर का कहना है की जैविक खेती से भूमि की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि हो जाती है। साथ सिंचाई के अन्तराल में वृद्धि होती है। उनका कहना है की जैविक उर्वरकों के उपयोग से रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होने से लागत में कमी आती है और फसलों की उत्पादकता में वृद्धि होती है।
जैविक खेती से मिटटी को होने वाले लाभ के सवाल पर मंगला प्रसाद मौर्य का कहना है कि अगर मिटटी की दृष्टि से देखें तो जैविक खाद के उपयोग से भूमि की गुणवत्ता में सुधार आता है। तथा भूमि की जल धारण की क्षमता बढती है। भूमि से पानी का वाष्पीकरण भी कम होता है। जैविक खेती, की विधि रासायनिक खेती की विधि की तुलना में बराबर या अधिक उत्पादन देती है। अर्थात जैविक खेती मृदा की उर्वरता एवं कृषकों की उत्पादकता बढ़ाने में पूर्णतः सहायक है। जैविक विधि द्वारा खेती करने से उत्पादन की लागत तो कम होती ही है इसके साथ ही कृषक को आय अधिक प्राप्त होती है। तथा अंतराष्ट्रीय बाजार की स्पर्धा में जैविक उत्पाद अधिक खरे उतरते हैं। जिसके फलस्वरूप सामान्य उत्पादन की अपेक्षा में कृषक भाई अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।