वाराणसी देव दीपावली पर जब संपूर्ण काशी गंगा तट पर लाखों दीपों की रोशनी में नहाएगी, तब यह प्राचीन नगरी एक बार फिर “मिनी भारत” की झलक पेश करेगी। इस बार की देव दीपावली न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक होगी, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विविधता का भव्य उत्सव भी बनेगी। गंगा किनारे जगमगाते दीप इस बार देश के अलग-अलग हिस्सों की परंपराओं और रीति-रिवाजों का जीवंत चित्र बनेंगे।प्रदेश के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह ने बताया कि इस वर्ष हर घाट अपनी विशिष्ट पहचान के साथ अलग-अलग संस्कृतियों का रंग बिखेरेगा। कहीं मराठी परंपरा की झलक दिखेगी, तो कहीं दक्षिण भारत की रीतियाँ, मैथिल ब्राह्मणों द्वारा दीपों की सजावट, गुजराती रंगोली और थालियों की साज-सज्जा विशेष आकर्षण का केंद्र बनेगी। काशी की देव दीपावली इस बार “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” की भावना को साकार करती नजर आएगी और देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं व पर्यटकों के लिए नया अनुभव बनेगी।पर्यटन मंत्री ने बताया कि काशी के पंच तीर्थों में से एक पंचगंगा घाट पर इस बार भी मराठी संस्कृति की अनूठी छटा दिखाई देगी। मराठी मोहल्ले के परिवार पारंपरिक ढंग से दीप सज्जा और गंगा आरती की तैयारियों में जुटे हैं। वहीं, पास स्थित नेपाली मोहल्ले के परिवार अपनी पारंपरिक शैली में दीये जलाकर गंगा तट को रोशन करेंगे। इन दोनों संस्कृतियों का संगम देव दीपावली की रात पंचगंगा घाट को विशेष बनाएगा।गौरीकेदार घाट पर दक्षिण भारतीय संस्कृति का रंग बिखरेगा। यहां गौरी केदारेश्वर मंदिर परिसर में दीप सज्जा, भक्ति संगीत और पारंपरिक पूजा की तैयारियाँ जोरों पर हैं। दक्षिण भारत से आए परिवारों की भागीदारी से यह घाट दक्षिण भारतीय परंपराओं का केंद्र बनेगा।इसी प्रकार पुराने गुजराती मोहल्ले में भी दीप सज्जा शुरू हो चुकी है। चौक, ठठेरी बाजार और मणिकर्णिका के आसपास के मंदिरों को विशेष रूप से सजाया जा रहा है। गुजराती समुदाय पारंपरिक परिधान में पूजा-अर्चना करेगा और रंगोली से सजे दीयों की थालियाँ इलाके की शोभा बढ़ाएँगी। वहीं, दशाश्वमेध और राजेंद्र प्रसाद घाट पर मैथिल ब्राह्मणों की पूजा-पद्धति से दीप प्रज्ज्वलन किया जाएगा। इस बार इन घाटों की सजावट ऐतिहासिक पैमाने पर होगी। जब देव दीपावली की रात गंगा के दोनों तट लाखों दीपों से आलोकित होंगे, तब यह दृश्य केवल धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि भारत की सांस्कृतिक एकता का अद्भुत उत्सव होगा।पर्यटन मंत्री ने कहा कि देव दीपावली भारत की आत्मा का उत्सव है। काशी के घाटों पर देश की हर संस्कृति की परंपरा एक साथ दमकती है। मराठी, दक्षिण भारतीय, गुजराती, मैथिल और नेपाली परंपराओं का यह संगम काशी को ‘मिनी भारत’ बना देता है। सरकार का उद्देश्य है कि ऐसी सांस्कृतिक परंपराओं को प्रोत्साहित करते हुए काशी को वैश्विक सांस्कृतिक केंद्र के रूप में और सशक्त किया जाए।संयुक्त निदेशक पर्यटन दिनेश कुमार ने बताया कि देव दीपावली 2025 पर पर्यटन विभाग की ओर से 10 लाख दीप जलाए जाएंगे, जबकि अन्य घाटों पर स्थानीय समितियाँ अपने स्तर पर दीप प्रज्ज्वलन करेंगी। उन्होंने बताया कि आस-पास के जिलों जैसे मिर्जापुर, जौनपुर, गाजीपुर, बलिया, गोरखपुर और प्रयागराज के अलावा दक्षिण भारत, गुजरात और देश के अन्य राज्यों से हजारों श्रद्धालु और विदेशी पर्यटक भी काशी पहुंचेंगे। ऐसे में पर्यटन विभाग ने तैयारियों को लेकर कोई कसर नहीं छोड़ी है, ताकि इस बार की देव दीपावली ऐतिहासिक और अविस्मरणीय बन सके।