अगर बतला दूँ तो हद से गुज़र जाना जरूरी है।

 

कहाँ से आ रहा हूँ क्या ये बतलाना जरूरी है,
अगर बतला दूँ तो हद से गुज़र जाना जरूरी है।

तुम्हें सच सुनने की आदत है तो मैं सच ही बोलूँगा,
कभी इक झूठ जो बोलूँ तो झुठलाना जरूरी है।

नहीं रक़बत रही मुझ से तो खुल कर बोल सकते हो,
सुनहरे ख़्वाब दिखला कर के फुसलाना जरूरी है।

बहुत मुश्किल से तो उलझा हूँ दुनिया के मसाएल में,
अब आ कर पास मेरे,मुझ को सुलझाना जरूरी है।

अभी ख़ुश्बू है,रंगत है,तो इठलाओ मगर सुन लो,
हक़ीक़त ये है कि फूलों का मुरझाना ज़रूरी है।

कहा रब ने कि जितनी उम्र चाहो मैं बढ़ा दूँगा,
हमारे पास लेकिन लौट कर आना जरूरी है।

नदीम इस अहदनामे में कहाँ लिख्खा है दिखलाओ,
मैं छुऊं जब उसे तो उस का घबराना जरूरी है।

नदीम अब्बासी “नदीम”
गोरखपुर।।