,
अनुराग लक्ष्य, 22 जुलाई
सलीम बस्तवी अज़ीज़ी
मुम्बई संवाददाता ।
जिस भी कश्ती के मुहफ़िज़ तुम बनो हरगिज़ उसे,
साँस भी थम जाए गर न छोड़ना मझधार में ।
मंज़िलें उनके ही क़दमों में ठहरतीं हैं सलीम,
जोड़ लेता है जो ख़ुद को वक्त की रफ्तार में ।।
उपरोक्त पंक्तियाँ लिखते वक्त मुझे ख़ुशी भी हो रही थी और अपने आत्म विश्वास को सलाम भी करने का मन कर रहा था। क्योंकि आज से 4 साल पहले अनुराग लक्ष्य के संपादक विनोद कुमार उपाध्याय ने जब मुंबई में अनुराग लक्ष्य की ज़िम्मेदारी सौंपी थी तब ही मैंने यह प्रण कर लिया था कि अनुराग लक्ष्य को अपने खून पसीने से सींच कर इसे एक दिन ज़रूर परवान चढ़ाऊंगा । शुक्र है ख़ुदा का मेरी मेहनत रँग लाई, और अनुराग लक्ष्य मुंबई वासियों का प्यार और दुलार पाने में कामयाब हो गई।
अभी अनुराग लक्ष्य के 30वें वर्ष के स्थापना दिवस पर मुंबई वासियों ने जिस प्यार और दुलार का परिचय दिया है। मैं सलीम बस्तवी अज़ीज़ी अपने उन सभी पाठकों और चाहने वालों का तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ। जिनके प्यार और मुहब्बत की वजह से अनुराग लक्ष्य दिन बदिन अपनी मंज़िल की तरफ बढ़ रही है।