आशा की किरण – ऋचा यादव

 

*आशा की किरण*

 

पथिक हूं मैं, 

चलते जाना है मेरा काम,

 राह में रुकना नहीं है मुझे मंजिल तक पहुँचना हैl

 माना कि लंबा है सफर और कठिन है जीवन की डगर l

 

 कशमकश से विचलित सा है मन,

 

पर रुकना नहीं है मुझे बढ़ते जाना है,

बस राह एक पकड़ चलते जाना है

 

 पथिक हूं मैं…

हो चाहे मजिल कितनी भी दूर

 और कितना लंबा हो सफर

 

 पर रूकना नहीं है,

बस चलते जाना है, राह एक पकड बस चलते जाना है l

 

  कभी वक्त की तेज आंधी में बिखर गया था आशियाना 

और खो गए थे सपने सारे,

 

 तब खामोशी और अंधेरों से भारी उन वीरान राहों में,

 

आंखों में लिए जुगनुओं सी चमक और

 जीवन की कठिनाइयों से जूझकर,सपने पूरे करने की ललक लिए,

 

 उन नन्हे- नन्हे हाथों ने थामा था हाथ हमारा

 

 ऐसा लगा मझधार में डूबी नैया को जैसे मिल गया हो किनारा l

 

 उम्मीदो का दीपक एक बार फिर टिमटिमाया

 और 

डूबते को मिल गया जैसे तिनके का सहारा l

 

 मन में ढेरों उम्मीदें लिए

फिर चल पडी मैं

उन नन्हे कदमों को मजिलं तक पहुचाँनेl 

 

कयोकि…..

पथिक हूँ मैं,

रूकना नहीं है मुझे,बस चलते जाना है जीवन की राहों को उसके लिए आसाँ बनाना है l

 

 बस चलते जाना है,बस चलते जाना हैl

       ऋचा यादव

प्रयागराज उत्तर प्रदेश