अयोध्या l
अयोध्या रामनगरी इन दिनों भक्ति रस में सराबोर है। राम मंदिर के सान्निध्य में चल रही श्री राम कथा में देशभर से आए श्रद्धालु उमड़ रहे हैं। कथा के प्रमुख वक्ता बाल संत भोले बाबा ने विशेष बातचीत की। बाल संत ऋषिकेश से हैं और राजस्थान के बीकानेर-चूरू क्षेत्र में रहते हैं। वे श्री हरि गौ सेवा संस्था के माध्यम से तीन गोशालाओं का संचालन कर रहे हैं—बीकानेर, चूरू और उत्तर प्रदेश में। सभी जगह को मिला के लगभग तीन हजार से अधिक गायों की वह सेवा कर रहे है इसके अलावा और भी समाजिक सेवा मे बढ़ चढ़ के जनता की सेवा करते है l बाल संत भोले बाबा ने बताया,- “गाय केवल एक पशु नहीं, बल्कि ‘विश्व की माता’ है। सनातन संस्कृति में हर धार्मिक कार्य में गौ माता का स्थान सर्वोपरि है। श्रीकृष्ण की भांति हमें भी गौ सेवा को जीवन का ध्येय बनाना चाहिए। हमारे आश्रम में लगभग ढाई हजार गायों की सेवा हो रही है। यह सब भक्तों के सहयोग से संभव हो पाया है।अयोध्या में श्रीराम मंदिर के निर्माण पर संत ने हर्ष प्रकट करते हुए कहा,”मैंने 15 वर्ष पहले रामलला को तंबू में देखा था, तो हृदय द्रवित हो गया था। आज भव्य मंदिर देखकर आनंदित हूं। यह मोदी-योगी जी के प्रयासों का फल है।” ग्रह-दोष और ज्योतिष विज्ञान पर संत की दृष्टि -बाल संत बोले, “जैसे देश को चलाने के लिए विभाग होते हैं, वैसे ही ब्रह्मांड को चलाने के लिए ग्रह हैं। किसी भी ग्रह की अशांति से जीवन में बाधाएं आती हैं, और शास्त्रीय पूजा-पाठ, दान आदि से संतुलन आता है।” वर्तमान शिक्षा व्यवस्था पर संत ने विचार प्रकट करते हुए कहा,”गुरुकुल परंपरा भारत की आत्मा थी। आज भले ही आधुनिक शिक्षा जरूरी है, लेकिन गीता, रामायण, भागवत जैसे ग्रंथों का ज्ञान भी अनिवार्य होना चाहिए। संस्कार से ही जीवन का कल्याण होता है।” उन्होंने बताया कि हरियाणा के कुछ स्कूलों में गीता पढ़ाई जा रही है, यह एक सराहनीय पहल है।
राम कथा के भावार्थ को स्पष्ट करते हुए बाल संत बोले,”भगवान राम ने अपने जीवन से मर्यादा, त्याग और आदर्श का पाठ पढ़ाया। राम कथा का सार है ‘राम का नाम जपो, जीवन को सुधारो।’ कथा में 400 से अधिक भक्त विभिन्न राज्यों से आए हैं—राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और तेलंगाना से।धर्म और कर्म के भेद पर उन्होंने स्पष्ट कहा,”धर्म वही है जो शास्त्र कहे और मर्यादा में हो। जब कर्म धर्म पूर्वक होता है, तभी वह जीवन को सुधारता है। अयोध्या धरती नहीं, भगवान का धाम है। यहां से हमें मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जीवन से प्रेरणा लेकर अपना आत्मकल्याण करना चाहिए।”