इक दफ़ा तुम को मेरे पास तो आना होगा।

रस्म-ए-उल्फत तो मेरी जान निभाना होगा,
इक दफ़ा तुम को मेरे पास तो आना होगा।

देख कर ढेर किताबों का सभी चौंक पड़े,
जो समझते थे मेरे पास ख़ज़ाना होगा।

कोई कितनी भी हिफ़ाज़त करे इस की लेकिन,
जिस्म से रूह को इक रोज़ तो जाना होगा।

हक़ के पीछे कोई भूले से न आयेगा कभी,
झूठ के साथ खड़ा सारा ज़माना होगा।

ख़्वाब में भी नहीं सोचा था कभी ये मैंने,
तेरे नेज़े का मेरे दिल पे निशाना होगा।

शहर में धूल,धुआँ,भीड़ है बदहाली है,
तुम्हारे गाँव का मौसम तो सुहाना होगा।

ले के चटख़ारा लहु पीते है मासूमो का,
ऐसे लोगो का जहन्नुम में ठिकाना होगा।

जो कफ़न बांध कर निकले हैं सरों पर अपने,
कर लो तसदीक़ वो मेरा ही घराना होगा।

आज भी राह तका करता है तू उसका नदीम,
दौरे हाज़िर में कहाँ तुझ सा दीवाना होगा।

नदीम अब्बासी “नदीम”
गोरखपुर।।