पितृ दिवस पर उपहार – नेहा वार्ष्णेय

पापा, इस पितृ दिवस पर मैं

आपको कुछ उपहार देना चाहती हूं

पर समस्या यह है कि क्या दूं ?

धन संपत्ति तो मेरे पास है नहीं,

वात्सल्य अपने बच्चों को दे चुकी हूं

ममता मां के आंचल में लुटा दी हूं,

प्रेम भी न जाने किन-किन लोगों में

दोस्तो रिश्तेदारों में बांट आई हूं l

समय भी घर परिवार

काम शौक मौज में बंट चुका है..

 

नितांत दीन हीन सी मैं ,

मेरे पास देने को कुछ भी नहीं है

पर फिर भी पापा

मैं आपको कुछ देना चाहती हूं..

 

याद आती है मुझे,

1983 कि वह सुबह

जब मैंने इस धरती पर जन्म लिया,

उस पल से लेकर इस पल तक

बहुत सारे कर्म तो मैं खुद से किए हैं

कुछ अनायास मुझसे हुए हैं

और कुछ कर्मों का

मैं बस निमित्त मात्र हूं,

 

कर्म के हालात जो भी हों,

फल तो मुझे मिलेगा ही

क्योंकि बचपन से सुना है

जो जैसा बोएगा,

वैसा ही फल पाएगा,

 

अब तक आपसे जो सीखा है

फल दो प्रकार के होते हैं

एक पाप और दूसरा पुण्य,

पाप के बारे में तो यही

कि खुद ही काटने होंगे?

दूसरे हैं पुण्य तो पापा

मैं नेहा वार्ष्णेय आपकी *मोंटू*

अपने जन्म से लेकर इस पल तक के

किए गए सारे पुण्य का फल

आपको उपहार में भेंट करती हूं,

और आशा करती हूं कि आप इस उपहार को ऐसे ही स्वीकार करेंगे,

 

जैसे श्रीराम ने स्वीकार किए थे

भक्त शबरी के झूठे फल

जैसे भगवान श्री कृष्ण ने स्वीकार किए थे सखा

सुदामा की पोटली में बंधे चावल।

 

ताकि मैं भक्त और सखा बन जाऊं

और आप मेरे राम और कृष्ण बन

सदा सदा के लिए अमर हो जाए ❤️

 

धन्यवाद पापा

आपकी मोंटू

(नेहा वार्ष्णेय)

09/06/2025